Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
भावार्थ ___जीव और अजीव से व्याप्त, सुख और दुःख से समन्वित (सम्मिश्रित) यह लोक ईश्वर द्वारा रचित है, ऐसा कई (ईश्वर कर्तृत्ववादी) लोग कहते हैं तथा दूसरे (सांख्यमतवादी आदि) कुछ लोग कहते हैं कि यह लोक प्रकृति आदि के द्वारा कृत है।
व्याख्या
लोक : ईश्वरकृत एवं प्रधानादिकृत
'ईसरेण कडे लोए'- इस गाथा में लोक (जगत्) की रचना के सम्बन्ध में जो विभिन्न विरोधी विचारधाराएँ, जो विश्व के अधिकांश धर्मों व सम्प्रदायों में एकान्तरूप से प्रचलित हैं, प्रस्तुत की हैं। पूर्वगाथा में लोकरचना के सम्बन्ध में दो मत प्रस्तुत किये थे-देवकृत और ब्रह्मारचित । मानवजाति का ज्यों-ज्यों विकास होता गया तथा विविध दार्शनिकों ने ज्यों-ज्यों इस विषय पर चिन्तन कियाउनके सामने लोक की उत्पत्ति या रचना के सम्बन्ध में मुख्य दो विकल्प आए---एक विकल्प तो यह था कि जगत् ईश्वर के द्वारा रचित है, दूसरा विकल्प यह था कि ईश्वर नाम का कोई पुरुष इस जगत् का रचयिता नहीं हो सकता, क्योंकि पुरुष (आत्मा) कर्तृत्व से रहित, निर्गुण, साक्षी व निर्लेप है। प्रकृति ही जगत् की विधात्री-की-धर्ती हो सकती है। यहाँ मूलपाठ में 'पहाणाइ' शब्द है, उसका अर्थ है---प्रधान आदि । प्रधान प्रकृति को कहते हैं । आदि शब्द से प्रकृति के अतिरिक्त अन्य कोई शक्ति भी जगत् की की है, ऐसे विभिन्न मतों को ग्रहण कर लेना चाहिए।
सर्वप्रथम ईश्वरकर्तृत्ववादियों की ओर से जो युक्तियाँ एवं प्रमाण प्रस्तुत किये जाते हैं, उन्हें दे रहे हैं । मुख्यतया ईश्वरकर्तृत्ववादी तीन हैं-वेदान्ती, नैयायिक और वैशेषिक । वेदान्ती ईश्वर को ही जगत् का उपादान कारण एवं निमित्त कारण मानते हैं । उनके द्वारा प्रस्तुत श्रुतियों के प्रमाण ये हैं
"यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते, येन जातानि जीवन्ति, यत् प्रयन्त्यभिसंविशन्ति । 'एतदात्म्यमिदं सर्वम्' 'सच्चत्यच्चाभवत्' सदिति पृथिवीजलतेजांसि प्रत्यक्षरूपाणि, त्यदिति वाय्वाकाशौ अप्रत्यक्षरूपौ।"
जिस (ब्रा = ईश्वर) से ये प्राणी उत्पन्न होते हैं, जिससे ये भूत (प्राणी) उत्पन्न होकर जीवित रहते हैं, जिसके कारण प्रयत्न (हलन-चलन आदि प्रवृत्ति)
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