Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
इसके पश्चात् लोकवादियों का यह कथन भी सर्वथा असंगत है, कि 'मात द्वीपों से युक्त होने के कारण यह लोक अन्तवान --- परिमित ही है।' त्योंकि इस बात को सिद्ध करने वाला कोई प्रमाण नहीं है । विचारशील प्राज्ञ पुरुष प्रमाणविरुद्ध बात को नहीं मान सकते ।
___ लोकवादियों का यह मन्तव्य भी हास्यास्पद है कि पुत्रहीन पुरुष की कोई गति (लोक) नहीं । यह छोटे बच्चे के कथन के समान युक्तिरहित है। क्योंकि हम पूछते हैं-विशिष्ट लोक या गति की प्राप्ति क्या पुत्र की सत्तामान से होती है या पुत्र के द्वारा किये हुए विशिष्ट अनुष्ठान से होती है ? यदि पुत्र के अस्तित्व मात्र से विशिष्ट लोक की प्राप्ति हो, तब तो समस्त लोक, कुत्तों और सूअरों से परिपूर्ण हो जाएँगे, क्योंकि इनके बहुत पुत्र होते हैं। यदि पुत्र द्वारा किये हुए शुभ अनुष्ठान से विशिष्ट लोक की प्राप्ति मानते हो तो यह कथन भी यथार्थ नहीं है। क्योंकि जिस पुरुष के दो पुत्र हैं, उनमें से एक ने शुभ अनुष्ठान किया है, दूसरे ने अशुभ अनुष्ठान किया है तो बताइए वह पिता एक पुत्र के शुभ अनुष्ठान के प्रभाव से उत्तम लोक में जाएगा अथवा अथवा दूसरे पुत्र द्वारा किये गए अशुभ अनुष्ठान के कारण अशुभ लोक में जाएगा? तथा उस पिता ने जो कर्म किये हैं, वे तो निष्फल ही होंगे न ? अतः पुत्र रहित के लिए कोई लोक (गति) नहीं है, यह कथन अविवेकपूर्ण है।
कुत्ते यक्ष हैं, ब्राह्मण देव हैं आदि कथन भी युक्तिशून्य होने से उपादेय नहीं हो सकता।
लोकवादियों का यह कथन भी यथार्थ नहीं है कि 'हमारे तथाकथित तीर्थकर अपरिमित पदार्थों को तो जानते हैं, लेकिन सर्वज्ञ नहीं।' क्योंकि जो पुरुष अपरिमित पदार्थदर्शी होकर भी सर्वज्ञ नहीं है, वह हेय (त्याज्य) और 'उपादेय (ग्राह्य) पदार्थों का उपदेश देने में समर्थ नहीं हो सकता । क्योंकि उसे हेय-उपादेय समस्त पदार्थों का ज्ञान नहीं है । सर्वज्ञ हुए बिना वह अतीन्द्रिय पदार्थों का उपदेश भी नहीं दे सकेगा । अतः यह मान्यता निराधार है ।
कीटों आदि की संख्या का ज्ञान भी उसके लिए उपयोगी ही है। अन्यथा, बुद्धिमान पुरुष ऐसी शंका करेंगे कि उसे कीड़ों के विषय का ज्ञान नहीं है, उसी प्रकार अन्य वस्तुओं का भी ज्ञान नहीं होगा । ऐसी आशंका के कारण वे नि:शंक होकर उनके द्वारा उपदिष्ट हेय-उपादेय में निवृत्त-प्रवृत्त नहीं हो सकेंगे । अतः अपरिमित पदार्थदी या अतीन्द्रियपदार्थद्रष्टा को सर्वज्ञ मानना अत्यावश्यक है।
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