Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र ही लोगों की जिज्ञासा को किसी तरह शान्त करने के लिए इस प्रकार की मिथ्याप्ररूपणा करके गुमराह करते हैं। वे एकान्तमताग्रही होकर ही इस प्रकार की झूठी बातें बनाते हैं।
___ अब जगत् की रचना के विषय में पूर्वगाथाओं में उल्लिखित विभिन्न मतों का निराकरण करते हुए शास्त्रकार कहते हैं
मूल पाठ सएहि परियाएहि लोयं बूया कडेति य । तत्त ते ण विजाणंति, ण विणासी कयाइवि ॥६।।
संस्कृत छाया स्वकैः पर्यायैर्लोकमब्र वन् कृतमिति च । तत्त्वं ते न विजानन्ति, न विनाशी कदाचिदपि ।।६।।
अन्वयार्थ (सएहि ) अपने अपने (परियारहि) अभिप्रायों के अनुसार (लोयं) लोक को (कडेति य) कृत= रचित (बूया) जो बताते हैं, (ते) वे (तत्त) वस्तुतत्त्व को (ण) नहीं (विजाणंति) जानते । क्योंकि यह लोक (जगत्) (कयाइवि) कभी भी (विणासी) विनाशी (ण) नहीं है ।
भावार्थ पूर्वोक्त देवोप्त, ब्रह्मोप्त, ईश्वरकृत, प्रकृतिकृत, अण्डकृत, ब्रह्माकृत, स्वयम्भूकृत, मारकृत, इत्यादि विभिन्न मतवादी अपने-अपने माने हए अभिप्रायों के अनुसार लोक (जगत्) को रचित (कृत) बताते हैं। परन्तु वे सब वस्तुस्वरूप को नहीं जानते। क्योंकि यह जगत् कदापि विनाशवान नहीं है, अपितु शाश्वत है।
व्याख्या
जगत् की रचना के सम्बन्ध में पूर्वोक्त मतों का खण्डन
_ 'सएहि परियाएहि लोयं'----शास्त्रकार के द्वारा प्रयुक्त यह पंक्ति सूचित करती है कि पूर्वोक्त अन्यदर्शनियों को अपनी-अपनी परम्परा से जो कुछ विचारधारा मिल गई है, उसकी सत्यासत्यता पर वे कोई विचार करना नहीं चाहते। इतना ही नहीं, वे एकान्तमताग्रह के चक्कर में पड़कर जो बात जिस रूप में उन्होंने पकड़ ली
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