Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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समय : प्रथम अध्ययन - द्वितीय उद्देशक
मूल पाठ
जाणं काणणाउट्टी, अबुहो जं च हिंसति । पुट्ठो संवेयइ परं, अवियत्त खु सावज्जं ||२५|| संस्कृत छाया
जानन् कायेनानाकुट्टी अबुधो यं च हिनस्ति
1
स्पृष्टः संवेदयति परमव्यक्तं खलु सावद्यम् ||२५||
अन्वयार्थ
(काएणडाउट्टी) किन्तु शरीर से हिंसा समझता । ( जं हिंसति ) जो पुरुष शरीर से केवल उसका फल स्पर्शमात्र से भोगता है ( अवियत्त ) अव्यक्त है स्पष्ट नहीं है ।
( जं) जो पुरुष ( जाणं) जानता हुआ मन से ( हिंसति) हिंसा करता है, नहीं करता, (च) और ( अबु हो ) नहीं हिंसा करता है, ( परं पुट्ठो संवेयइ) वह (खु) वस्तुत: ( सावज्जं ) वह सावद्यकर्म
।
भावार्थ
जो व्यक्ति रोष-द्वेष आदि के आवेशवश केवल मन से ही हिंसा करता है, मगर शरीर से नहीं करता तथा अनजान में शरीर से हिंसा करता है, वह उस कर्म के फल को स्पर्शमात्र से भोगता है-यानी कर्मबन्ध के फल का अनुभव करता है, क्योंकि उसका वह सावद्य (पाप) कर्म अव्यक्तअप्रकट होता है । अर्थात् उक्त दोनों प्रकार के दोषयुक्त व्यापार स्पष्ट नहीं होते ।
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व्याख्या
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कर्मचिता से दूर - क्रियावादी
'जाणं काएणणाउट्टी, अबुहो जं च हिंसति' इस गाथा में शास्त्रकार ने क्रियावादियों की कर्मचिन्ता के प्रति उपेक्षा प्रदर्शित की है। शास्त्रकार ने यहाँ दो प्रकार से हिंसा की क्रिया से कर्मबन्ध न होने की क्रियावादियों की मान्यता स्पष्ट की है । एक तो यह कि एक व्यक्ति केवल मन से ही जान-बूझकर किसी प्राणी की हिंसा करता है, बाहर में वह हिंसा प्रकट नहीं है, क्योंकि शरीर से किसी प्रकार की हिंसक क्रिया करता दिखाई नहीं देता । शरीर से वह अनाकुट्टी है। इसका मतलब है कि शरीर से वह जीवहिंसा नहीं करता है । कुट्ट धातु का अर्थ छेदन है, जो पुरुष रोष-द्वेषादिवश छेदन - भंदन करता ( कूटता पीटता ) है, उसे आकुट्टी कहते हैं और जो
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