Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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समय : प्रथम अध्ययन-द्वितीय उद्देशक
१८७
उपचय (बन्ध) कारण नहीं होता, यह बताया गया है; तब सहज ही प्रश्न होता है, कि कर्मबन्ध किस प्रकार होता है ? कर्मों का आदान (ग्रहण) किस माध्यम से होता है ? इसके उत्तर में ये दोनों गाथायें प्रस्तुत की गई हैं। इनका आशय स्पष्ट है। जिनके द्वारा कर्मों का आदान, ग्रहण या बन्ध किया जाता है, उसे आदान कहते हैं। जिन आदानों के माध्यम से पापकर्म किये जाते हैं, वे आदान तीन प्रकार के हैं -- वध्यप्राणी को मारने की इच्छा से स्वयं उस प्राणी को मारना, उस पर प्रहार करना यह प्रथम कर्मादान है, (२) प्राणी को मारने हेतु किसी नौकर आदि को भेजकर या किसी को प्रेरित करके उस प्राणी का घात कराना, यह द्वितीय कर्मादान है,
और (३) प्राणी का घात करते हुए पुरुष को मन से अनुज्ञा देना, अनुमोदन-समर्थन करना, यह तीसरा कर्मादान है।' परिज्ञोपचित कर्म में और इस तीसरे आदान में यह अन्तर है कि परिज्ञोपचित कर्म में केवल मन से चिन्तनमात्र होता है, जबकि इस तीसरे आदान में दूसरे के द्वारा मारे जाते हुए प्राणी के घात का मन से अनुमोदन किया जाता है।
२७वीं गाथा में उसी बात को दोहराया गया है। उसका अभिप्राय यह है प्राणिघात के विषय में स्वयं करना, कराना और अनुमोदन करना ये तीन कर्मबन्ध के आदान (द्वार) हैं।
एवं भावविसोहीए निव्वाणमभिगच्छइ-पूर्वोक्त पंक्ति में 'उ' (तु) शब्द निश्चयार्थक है। अर्थात् पूर्वोक्त तीन ही प्रत्येक तथा तीनों मिलकर कर्मबन्ध के कारण हैं, क्योंकि इन तीनों में अध्यवसाय दुष्ट रहता है। इसलिए इनके द्वारा पापकर्म का उपचय होता है। इससे फलितार्थ यह निकलता है कि जहाँ प्राणिघात के प्रति दुष्ट अध्यवसायपूर्वक करना, कराना और अनुमोदन ये तीन नहीं हैं, तथा जहाँ राग-द्वेषरहित बुद्धि से प्रवृत्ति होती है, ऐसी स्थिति में जहाँ केवल मन से या शरीर से अथवा मानसिक अभिप्राय-रहित दोनों से प्राणातिपात हो जाता है, वहाँ भावविशुद्धि होने के कारण कर्म का उपचय नहीं होता और कर्म का उपचय न होने के कारण जीव समस्त द्वन्द्वों से रहित निर्वाण को प्राप्त कर लेता है। यह इस गाथा के उत्तरार्ध का आशय है।
भावविशुद्धिपूर्वक प्रवृत्ति करने से कर्मबन्ध नहीं होता, इसे बौद्धमतानुसार एक दृष्टान्त द्वारा शास्त्रकार समझाते हैं
१. जैनशास्त्रों में कृत, कारित और अनुमोदित--ये तीन करण हिंसा आदि के
बताये गये हैं, वैसे ही बौद्धमत में हिंसा आदि के ये तीन आदान बताये हैं।
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