Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र रहने में सुख-शान्ति समझते हैं तो बुद्धि पर ताला लगा कर चुपचाप बैठना चाहिए, न उन्हें किसी को अपनी बात समझानी चाहिए और न ही उपदेश देना चाहिए, अपने मत का भी प्रचार उन्हें नहीं करना चाहिए। परन्तु वे स्वयं कहाँ चुपचाप बैठते हैं, अपने मत का प्रचार करने के लिए बुद्धि का प्रयोग करते हैं। जब वे स्वयं को अपने अज्ञानवाद के सिद्धान्त पर स्थिर एवं अनुशासित नहीं रख सकते, यानी अपने आपको अज्ञानवाद की शिक्षा देने में समर्थ नहीं है, तब दूसरों (शिष्यों) को अज्ञानवाद सिद्धान्त के अनुशासन (शिक्षा) में कैसे चलाएँगे? दूसरी बात, जब वे स्वयं अज्ञानी हैं, तब शिष्य बनकर जो शिक्षा के लिए उनके पास आते हैं उन्हें वे अज्ञानवाद की शिक्षा भी कैसे दे सकेंगे ? क्योंकि अज्ञानवाद की शिक्षा तो ज्ञान के द्वारा ही दी जाएगी, ज्ञान को तिलांजलि देकर कोई भी अज्ञानवादी कैसे शिक्षा दे सकेगा ? अत: सबसे बड़ी चुप (मौन) की साधना में ही अज्ञानवाद है ? क्योंकि 'मौनं विभूषणमज्ञतायाः' अज्ञता (अज्ञान) का आभूषण मौन है। यही बात शास्त्रकार इस गाथा की निचली पंक्ति में कहते हैं .---'अप्पणो य परं नालं, कुतो अन्नाण - सासिउं'। इससे अज्ञानवादियों का यह कथन भी खण्डित हो जाता है कि दूसरे की चित्तवृत्ति नहीं जानी जाती, इसलिए अज्ञान ही श्रेयस्कर है, क्योंकि 'अज्ञान ही श्रेयस्कर है, इस प्रकार का उपदेश दूसरों को देने के लिए प्रवृत्त होकर उन्होंने स्वयं दूसरे की चित्तवृत्ति का ज्ञान होना स्वीकार कर लिया है। यदि दूसरे की चित्तवृत्ति नहीं जानी जाती है तो अज्ञानवादी गुरुओं की चित्तवृति को उनके शिष्य कैसे जानेंगे, उन पर कैसे विश्वास कर लेंगे, कि हमारे गुरु ज्ञानवान् हैं। उनका बताया हुआ ज्ञान सच्चाज्ञान है। वे अगर अपने गुरुपों की चित्तवत्ति को नहीं जानेंगे या विश्वास नहीं करेंगे तो अज्ञानवाद का उपदेश कैसे ग्रहण करेंगे ? जब दूसरे की चित्तवृत्ति को जान नहीं सकते तो फिर उन्हें अज्ञानवाद को शिक्षा ही क्यों देते हैं ? अन्यमतवादियों ने स्पष्ट स्वीकार कर लिया है कि दूसरे की चित्तवृत्ति जानी जा सकती है, देखिये उनका वह श्लोक
आकारैरिंगितर्गत्या चेष्टया भाषणेन च ।
नेत्र-वक्त्रविकारैश्च लक्ष्यतेऽन्तर्गतं मनः ॥ अर्थात्---मनुष्य की आकृति (चेहरे) से, इंगित से, गति (चाल-ढाल) से, चेष्टा से, भाषण (बोलचाल) से, आंखों और मुह के विकारों से उसका अन्तर्मन जान लिया जाता है।
जब अज्ञानवादी स्वतः प्रेश्रित अज्ञानी हैं, तो वे बिना ज्ञान के यह आक्षेप कैसे कर सकते हैं कि 'समस्त उपदेश आदि म्लेच्छों द्वारा किये हुए आर्यभाषा के
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