Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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समय : प्रथम अध्ययन ---द्वितीय उद्देशक
हैं ? वे स्वयं अपने अन्तर् में विवेक का गज डालकर देखें कि क्या यज्ञ के समय पशुबलि से होने वाली हिंसा अहिंसा हो जाएगी ? क्या यज्ञ में मरने वाले प्राणी प्राणी नहीं हैं ? क्या वे उस समय जीव न रहकर अजीव हो जाएँगे? यदि उन तथाकथित ज्ञानवादियों को प्राणियों के स्वरूप का ज्ञान होता तो क्या वे उनकी (यज्ञार्थ होने वाली) हिंसा को अहिंसा कह सकते थे? यह स्पष्टतः प्राणियों के सम्बन्ध में उनकी अज्ञानता सूचित करता है । यह इस पंक्ति का आशय है।
___अब दो गाथाओं द्वारा दृष्टान्त देकर शास्त्रकार समझाते हैं कि किस प्रकार से वे सम्यक्ज्ञानवर्जित तथाकथित ब्राह्मण-श्रमण अज्ञान से आवृत हैं
मूल पाठ मिलक्खू अमिलक्खूस्स, जहा वुत्ताणुभासए । ण हेउ से विजाणाइ, भासि तऽणुभासए ॥१५॥ एवमन्नाणिया नाणं, वयंतावि सयं सयं । निच्छयत्थं न याणंति, मिलक्खु व्व अबोहिया ॥१६।।
संस्कृत छाया म्लेच्छोऽम्लेच्छस्य, यथोक्ताऽनुभाषकः । न हेतु स विजानाति, भाषितंत्वनुभाषते ॥१५।। एवमज्ञानिकाः ज्ञानं, वदन्तोऽपि स्वकं स्वकम् । निश्चयार्थं न जानन्ति, म्लेच्छा इवाबोधिकाः ।।१६।।
अन्वयार्थ (जहा) जैसे (मिलक्ख) म्लेच्छ पुरुष (अमिलक्खूस्स) अम्लेच्छ यानी आयंपुरुष के (वुत्ताणुभासए) कथन का अनुवाद करता है। (से) वह (हे') कारण को (ण विजाणाइ) नहीं जानता है, (तु) किन्तु (भासियं) उनके भाषण का (अणुभासए) अनुवादमात्र करता है ॥१५॥
(एवं) इसी तरह (अन्नाणिया) सम्यग्ज्ञानहीन ब्राह्मण (परिव्राजक) और श्रमण (शाक्यादि श्रमणवेषधारी) (सयं सयं) अपने-अपने माने हुए (नाणं) ज्ञान को (वयंतावि) कहते हुए भी (निच्छयत्थं) निश्चित अर्थ (सर्वज्ञोक्त सुसिद्धान्त) को (न याणंति) नहीं जानते हैं । (मिलक्खु व्व) वे पूर्वोक्त म्लेच्छ की तरह (अबोहिया) बोधरहित हैं ॥१६॥
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