Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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समय : प्रथम अध्ययन-प्र
११५ अन्वयार्थ (एगे उ बाला) कई अज्ञानी (खणजोइणो) क्षणमात्र रहने वाले (पंच खंधे) पाँच स्कन्ध (वयंति) बताते हैं, कहते हैं। (अण्णो) पंचभूतों से भिन्न, (अणण्णो) तथा अभिन्न (हेउयं) कारण से उत्पन्न (च) तथा (अहेउयं) बिना कारण उत्पन्न आत्मा (णेवाहु) नहीं है, ऐसा कहते हैं।
भावार्थ कई तत्त्वविवेक से अनभिज्ञ वादी क्षणमात्र स्थिर रहने वाले रूप, वेदना, विज्ञान, संज्ञा और संस्कार इन पाँच स्कन्धों का प्रतिपादन करते हैं। पाँच भूतों से भिन्न अथवा अभिन्न कारण से उत्पन्न या बिना कारण उत्पन्न आत्मा नहीं है, ऐसा वे मानते हैं ।
व्याख्या
असत्कार्यवादी बौद्धमत में आत्मा का स्वरूप इस गाथा में शास्त्रकार पंच स्कन्ध मात्र को ही आत्मा मानने वाले बौद्ध मत का स्वरूप बताते हुए उनके मत की विवेक-विकलता प्रदर्शित करते हैं। सभी बौद्धमत वाले ऐसा नहीं मानते, इस दृष्टि से शास्त्रकार ने 'वयंतेगे' कहकर कतिपय बौद्धमतवादियों का आत्मा के सम्बन्ध में मन्तव्य प्रकट किया है । साथ ही उक्त मत को विवेकमूढ़ता सूचित करने के लिए शास्त्रकार ने यह भी कहा है-'बाला उ खणजोइणो' वे सत्-असत् के विवेक से रहित विचारमूढ़, बालक की तरह अज्ञ हैं, क्योंकि वे उन पंच स्कन्धों को क्षणमात्रजीवी कहते हैं। साथ ही उसी को आत्मा मानते हैं, उन पाँच स्कन्धों से भिन्न कोई परलोकगामी आत्मा नहीं मानते । वे पाँच स्कन्ध इस प्रकार हैं
___ रूप, वेदना, विज्ञान, संज्ञा और संस्कार, ये पाँच ही स्कन्ध हैं। इनसे भिन्न कोई आत्मा नामक स्कन्ध नहीं है ।'
पृथ्वी, जल, तेज, वायु ये चार धातु आदि तथा रूप आदि विषय रूपस्कन्ध कहलाते हैं ।२ सुख-दुःख और असुख-अदुःखरूप (जो न सुख रूप हों, न दुख रूप) १. इहहि पूर्वहेतुजनिता प्रतीत्यसमुत्पन्नाः पंचोपादान स्कन्धाः।
-माध्यमिक २. तत्थ य किंचिसितादी हिनधनलक्खणां—तदेतं रूपनलक्खणेन एकविधंपि भूतोपादानभेदतो दुविधं । तत्थ भूतरूपं चतुविधं, उपादानरूपं चतुवीसविधं ।
-विसुद्धि०
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