Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
इस बात को वे (अन्यदर्शनी) नहीं जानते, किन्तु वे कर्मबन्धन से मुक्ति या दुःख से मुक्ति के लिए अंधी दौड़ लगाते हैं । आशय यह है कि आत्मा के कर्मबन्धन से रहित होने की सन्धि (रहस्य) को अन्यदर्शनी लोग जाने बिना ही दुःख से मुक्त होने की अंधाधुंध प्रवृत्ति करते हैं।
पूर्वगाथाओं में पंचभूतवादी से लेकर पंचस्कन्धवादी या चातुर्धातुकवादी बौद्ध तक का स्वरूप बताकर विविध प्रमाणों से उनके मत को मिथ्या सिद्ध किया जा चुका है।
__ पंचभूतवादियों के मत में कर्मबन्धन तथा उससे मुक्ति के विषय में घोर अन्धेर है ही। वे पंचभूतों से अतिरिक्त किसी आत्मा या कर्मबन्धन, कर्ममुक्ति आदि को मानने ही नहीं तथा दु:ख-मुक्ति के विषय में उनका जो भोगविलासवादी रुख है, वह कितना छिछला है, यह हम पहले बता चुके हैं। यही हाल वेदान्तियों (आत्माद्वतवादियों) का है । वे भी सारी दुनियाँ की एक सिर्फ एक आत्मा मानकर कर्मबन्ध और उससे मुक्ति को घपले में डाल देते हैं। वे भी व्यक्तिशः आत्मा के कर्मबन्ध और उससे मुक्ति का उपाय नहीं बता सकते। इसके बाद है-तज्जीव-तच्छरीरवादी । वह भी पंचभूतवादियों का भाई है। उनकी दुःख-मुक्ति भी पंचभूतवादियों की सी विचित्र ढंग की है। इसलिए वे भी आत्मा के साथ कर्मबन्ध की सन्धि और उससे मुक्ति के रहस्य से बिलकुल अनभिज्ञ है । सांख्यों का तो आत्मा ही सर्वथा निष्क्रिय, भोगी और अकर्ता है। वह न तो कर्मबन्धन और आत्मा के मेल को भलीभाँति जानता है, और न ही उससे मुक्त होने की बात समझता है । उसका आत्मा तो मूर्ति की तरह निष्क्रिय है। इसलिए वे भी इस सन्धि को जाने-समझे बिना यों ही लकीर के फकीर बने चले जा रहे हैं । आत्मषष्ठवादी आत्मा को तो मानते हैं, मगर उनका आत्मा सर्वथा कूटस्थनित्य होने के कारण न बन्ध कर सकता है, (हालाँकि बन्ध तो होता है) और न मोक्ष के लिए उपाय कर सकता है। इसलिए वे आत्मषष्ठवादी 'वैशेषिक या वेदवादी' तो आत्मा के साथ कर्म की सन्धि या बन्धन के रहस्य से बिलकुल अपरिचित हैं। आत्मा को पंचस्कन्धमय मानने वाले अफलवादी हैं, उनके मत से जीव को कृतनाश और अकृताभ्यागम नाम के दोष लगते हैं । चातुर्धातुकवादी बौद्धों का आत्मा ही क्षणस्थायी है, तब वह क्या तो बन्धन को जानेगा और कब उस बन्ध से मुक्ति होगा? इस प्रकार यह सभी मतवादी आत्मा और कर्म की सन्धि (बन्धन) और उसके जैनदर्शन-मान्य मिथ्यात्वादि पाँच कारणों से विलकुल अनभिज्ञ होकर बन्धन या दुःख से मुक्ति के नाम से तथाकथित उपाय करते रहते हैं । किन्तु वह तो अन्धे कुएँ में कूदने के समान प्रवृत्ति है । क्योंकि जिस आत्मा को बन्धन से या दुःख से मुक्त कराना चाहते हैं, उस बन्धन या आत्मा के
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