Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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समय : प्रथम अध्ययन-प्रथम उद्देशक
१३७
दर्शनी (उच्चावयाणि) ऊँच-नीच गतियों में (गच्छंता) गमन करते हुए (णंतसो) अनन्त बार (गम्भमेस्संति) माता के गर्भ में आएंगे या गर्भ को पायेंगे।
भावार्थ वीतरागियों में श्रेष्ठ ज्ञातपुत्र तीर्थंकर महावीर ने इस प्रकार कहा है कि पूर्वोक्त अफलवादी विविध उच्च-नीच गतियों में गमन-भ्रमण करते हुए अनन्त बार माता के गर्भ में आएँगे।
व्याख्या
सर्वज्ञ ज्ञातपुत्र महावीर द्वारा भविष्यवाणी इस गाथा में 'नायपुत्ते महावीरे एवमाह' कहकर सूत्रकार गणधर ने यह नम्रता प्रगट की है कि मैं अपने मुख से इस प्रकार की बात नहीं कह रहा हूँ। यह बात तीर्थकर भगवान महावीर द्वारा प्रकट की गई है। गणधर श्री सुधर्मास्वामी अपने सुशिष्य जम्बूस्वामी से कहते हैं-मैं यह बात अपनी ओर से नहीं कहता, अपितु तीर्थंकर की आज्ञा से उनके उपदेशों के आधार पर या तीर्थकर से साक्षात् जैसा और जितना सुना है वही मैं तुमसे कह रहा हूँ, अपनी बुद्धि से कल्पित करके नहीं कह रहा हूँ। इस प्रकार आद्योपान्त इस अध्ययन में वर्णित बातें और इस गाथा में उक्त बातें भगवान महावीर द्वारा साक्षात् प्रकाशित किये जाने से ये तीन बातें ध्वनित होती हैं----एक तो गणधर श्री सुधर्मास्वामी द्वारा सर्वज्ञ आप्तपुरुष एवं उनकी वाणी के प्रति विनय व्यक्त किया गया है। दूसरे, सर्वज्ञ आप्तपुरुष तीर्थंकर द्वारा प्रतिपादित होने से इस वाणी पर प्रामाणिकता की मुहर-छाप लग गई और तीसरे, इससे जनता के हृदय में इन शास्त्रोक्त बातों पर भली-भाँति विश्वास जम जाता है कि यह अल्पज्ञ द्वारा कही हुई संदिग्ध बात नहीं है, अपितु सर्वज्ञ द्वारा कथित या उपदिष्ट है। ऐसा न किया जाता तो कोई भी व्यक्ति शास्त्र पाठक से पूछ सकता था कि जिन अन्य दार्शनिकों के लिये आपने जो दुःख-मुक्ति की असमर्थता बताई तथा बार-बार विभिन्न योनियों में जन्म-मरण, गर्भ आदि दुखों का अनुभव करने या नरकादि में जाने अथवा अनन्त बार गर्भ में आने की जो बातें कहीं गई, वे तुम्हारी कही हुई हैं या सर्वज्ञ आप्तपुरुष की ? यदि तुम्हारे द्वारा कही गई हैं, तब तो इसमें किसी को भी शंका करने या आक्षेप लगाने की गुजाइश बनी रहेगी। अल्पज्ञ कथित बात में लोगों को सन्देह भी हो सकता है, लेकिन यह अध्ययन मूल में सर्वज्ञोक्त होने पर किसी को भी किसी बात में सन्देह करने का अवसर नहीं रहता। इसीलिए शास्त्रकार ने कहा-'नायपुत्ते महावीरे एवमाह जिणोत्तमे ।'
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