Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
सयं कडं न अण्णेहि, वेदयन्ति पुढो जिया । संगइअं तं तहा तेसि, इहमेगेसि आहियं ॥३॥
संस्कृत छाया न तत् स्वयं कृतं दुःखं, कुतोऽन्यकृतञ्च ? । सुखं वा यदि वा दुःखं, सैद्धिकंवाऽसैद्धिकम् ।।२।। स्वयं कृतं नाऽन्यैर्वेदयन्ति पृथग्जीवाः । सांगतिक तत्तथा तेषामिहैकेषामाख्यातम् ।।३।।
अन्वयार्थ (तं) वह (दुक्खं) दुःख (सयं कडं) स्वयं किया हुआ (न) नहीं है । (अन्न कडं) दूसरे का किया हुआ (कओ) कहाँ से हो सकता है ? (सेहियं) सिद्धि से उत्पन्न (वा असेहियं) अथवा सिद्धि के बिना उत्पन्न (सुहं वा) सुख अथवा (दुक्खं) दु:ख, जिसे (जिया) जीव (पुढो) पृथक-पृथक (वेदयंति) भोगते हैं (सयं) स्वयं अथवा (अन्नेहि) दूसरों के द्वारा (कडं न) किया हुआ नहीं है । (तं) वह (तेसि) उनका (तहा) वैसा (संगइ) नियतिकृत है, (इह) इस जगत में ऐसा (एगेसि) किन्हीं मतवादियों का (आहियं) कथन है।
भावार्थ वह दुःख स्वयं के द्वारा किया हुआ जब नहीं है, तो दूसरे के द्वारा किया हुआ कैसे हो सकता है ? विभिन्न प्राणी जो सुख या दुःख अलग-अलग भोगते हैं, वे सुख-दुःख चाहे सिद्धि से उत्पन्न हुए हों या सिद्धि के बिना उत्पन्न हुए हों, वे उसके अपने किए हुए नहीं हैं, और न ही दूसरों के द्वारा किये हए हैं। उनका वह सुख या दुःख नियतिकृत ही होता है, ऐसा किन्हीं (नियतिवादियों) का कथन है।
व्याख्या
नियतिवादियों का मिथ्या-प्ररूपण
__इससे पहले की गाथा में नियतिवाद का आत्मा के विषय में जो कथन था, वह किसी अपेक्षा से युक्तिसंगत था, परन्तु अब इन दो गाथाओं में जो प्ररूपण है, वह उनके एकान्त मिथ्याग्रह को सूचित करता है । नियतिवादियों का कहना यह है कि इस संसार में समस्त प्राणियों के द्वारा जो सुख-दुःख, जन्म-मरण, एक भव से
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