Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
सभी अर्थक्रियाओं को एक साथ ही कर डालेगा तो दूसरे-तीसरे आदि क्षणों में क्या करेगा? अत: एक साथ अर्थक्रिया करने का पक्ष भी समीचीन नहीं है।
बौद्धों की ओर से यह युक्ति दी जाती है कि पदार्थ को अनित्य माना जाये तो सभी पदार्थों की क्षणिकता बिना ही प्रयत्न सिद्ध हो जाती है। कहा भी है--
___ जातिरेव हि भावानां विनाशे हेतुरिष्यते ।
यो जातश्च न च ध्वस्तो, नश्येत्पश्चात्स केन च ।। अर्थात् पदार्थों की उत्पत्ति ही उनके विनाश का कारण है, जो पदार्थ उत्पन्न होते ही नष्ट नहीं होता, वह बाद में किस कारण से नष्ट होगा? यानी नष्ट ही नहीं होगा।
अतएव सिद्ध हुआ कि पदार्थ अपने स्वभाव से अनित्य (क्षणिक) ही उत्पन्न होते हैं, नित्य नहीं । यही शास्त्रकार का आशय है । 'अण्णो अणण्णो०' गाथा में उल्लिखित इस पंक्ति का आशय यह है कि जैसे पाँच भूत और छठे आत्मा को मानने वाले सांख्यमतवादी भूतों से भिन्न आत्मा को मानते हैं, उस तरह से बौद्ध मत वाले नहीं मानते, और जैसे चार्वाक पाँच भूतों से अभिन्न आत्मा स्वीकार करते हैं, उस तरह भी ये बौद्ध नहीं मानते । यहाँ भिन्न के लिए 'अन्य' (अण्णो) तथा अभिन्न के लिए अनन्य (अणण्णो) शब्द शास्त्रकार ने प्रयुक्त किए हैं। इसी प्रकार ये बौद्ध आत्मा को शरीर रूप में परिणत पंच भूतों से उत्पन्न, अथवा आदि-अन्त रहित नित्य स्वीकार नहीं करते हैं । इसे सूचित करने के लिए शास्त्रकार ने बताया है- 'णेवाहु हेउयं च अहेउयं' अर्थात् बौद्धों ने आत्मा को सहेतुक (कारण से) या अहेतुक (बिना कारण) उत्पन्न नहीं माना । इस प्रकार संक्षेप में कुछ बौद्ध दार्शनिकों की मान्यता का निरूपण किया है।
अब शास्त्रकार चार धातु मानने वाले बौद्धों के मत का निरूपण करते हुए कहते हैं-~
मूल पाठ पुढवी आउ तेऊ य, तहा वाऊ य एगओ। चत्तारि धाउणो रूवं, एवमाहंसु आवरे ॥१८॥
संस्कृत छाया पृथिव्यपस्तेजश्च तथा वायुश्चैकतः । चत्वारि धातोरूपाणि एवमाहुरपरे ॥१८॥
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