Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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समय : प्रथम अध्ययन--प्र
७०
रेत के एक-एक-कण में तेल नहीं है तो उसके ढेर में तेल कहाँ से निकलेगा ? जो गुण प्रत्येक में नहीं है, वह उसके समुदाय में भी उत्पन्न नहीं हो सकता।
आपने जो यह कहा था कि गुड़ और आटा और महुआ आदि मद्य के प्रत्येक अंग में न रहने वाली मद शक्ति उसके समुदाय से पैदा हो जाती है, इसी प्रकार पंचमहाभूतों में प्रत्येक में वह चैतन्य शक्ति नहीं है, किन्तु महाभूतों के समुदाय से तो चैतन्य शक्ति हो ही जाती है, यह युक्ति भी यथार्थ नहीं है, क्योंकि दृष्टांत और दृष्टान्तिक में यहाँ समानता नहीं है । गुड़, आटा, महुआ आदि मद्य के प्रत्येक अंग में सूक्ष्म रूप से मादक शक्ति विद्यमान रहती है, वही समुदायावस्था में स्पष्ट रूप से प्रगट हो जाती है। किन्तु यहाँ तो पृथ्वी-जल आदि प्रत्येक भूत में चैतन्य शक्ति का सर्वथा अभाव होता है, तब भूतों के समूह में चैतन्य शक्ति कहाँ से उत्पन्न हो जायेगी ?
अगर भूतों को ही चेतन माने तो मृत्यु की व्यवस्था नहीं बन सकती। क्योंकि मृतक शरीर में पाँचों महाभूत विद्यमान रहते हैं । यदि कहें कि मृतक शरीर में वायु या तेज नहीं होते हैं, इसलिए मृत्यु होती है। जैसा कि शास्त्रकार ने कहा है (अह तेसि विणासेण विणासो होइ देहिणो) तो यह कथन भी अनुभव विहीन है, क्योंकि मृत शरीर में सूजन दृष्टिगोचर होती है, इसलिए वायु का उसमें अभाव नहीं होता और न तेज का अभाव होता है, क्योंकि पाचन स्वरूप कोथ (मावाद) का उत्पन्न होना तेजस्तत्त्व का कार्य है। अतः वायु आदि का अभाव होने से मृत्यु हो जाती है, यह कथन यथार्थ नहीं है।
___ यदि कहें कि मृत शरीर में से सूक्ष्म वायु और सूक्ष्म तेज निकल जाते हैं, इसलिए मृत्यु हो जाती है तो ऐसा मानना भी उचित नहीं है। ऐसा मानेंगे तो केवल नाम का ही विवाद रहेगा क्योंकि दूसरा (सूक्ष्म तेज और सूक्ष्म वायु) नाम देकर आपने भी प्रकारान्तर से जीव का अस्तित्व स्वीकार कर लिया।
एक और युक्ति से भी आपकी बात का खण्डन हो जाता है। आपने कहा कि पंचभूतों के समुदाय मात्र से चैतन्यगुण उत्पन्न हो जाता है, पर यह बात भी प्रत्यक्ष अनुभव की कसौटी पर खरी नहीं उतरती । एक कारीगर ने मिट्टी की एक पुतली बनाई । उसमें मिट्टी, पानी, हवा, धूप (तेज) अग्नि (पकाते समय) एवं आकाश इन पाँचों भूतों को वहाँ एकत्र किया गया । इस प्रकार पृथ्वी आदि पाँचों भूतों को मिलाकर एक स्थान पर रख देने पर भी वहाँ चेतना दिखाई नहीं देती। मिट्टी की पुतली में पाँचों भूत मौजूद हैं, फिर भी उसमें चेतना नहीं आती। वह बोलती-चालती नहीं, जड़ ही बनी रहती है।
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