Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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समय : प्रथम अध्ययन--प्रथम उद्देशक
मान के द्वारा ही चार्वाक करता है, यह पागलपन नहीं तो क्या है ? चार्वाक अनुमान को इस प्रकार के अनुमान प्रयोग द्वारा ही अप्रमाण सिद्ध कर सकता है"अनुमान प्रमाण नहीं है, क्योंकि वह अर्थ को ठीक-ठीक नहीं बतलाता है, जसे कि अनुभव की हुई अनुमान व्यक्ति जो अर्थ को ठीक-ठीक नहीं बतलाता वह प्रमाण नहीं है ।”
____ यदि कहें कि दूसरे मतवादी अनुमान को प्रमाण मानते हैं, इसलिए हम भी परमतसिद्ध अनुमान का आश्रय लेकर ही अनुमान की अप्रमाणता सिद्ध करते हैं, तब हमें आप यह बताइये कि परमतसिद्ध प्रमाण आपके मत में प्रमाण है या अप्रमाण? यदि प्रमाण कहते हैं तो आप अनुमान को अप्रमाण नहीं कह सकते, क्योंकि अपने ही मुख से आप उसे आप प्रमाण कह रहे हैं। यदि अनुमान अप्रमाण है, तो आप उस (अनुमान) का सहारा लेकर दूसरे को क्यों समझाते हैं ? यदि कहें कि दूसरा अनुमान प्रमाण मानता है इसलिए हम अनुमान के द्वारा उसे समझाते हैं, यह कथन भी युक्तिसंगत नहीं । दूसरा कदाचित बुद्धि की मन्दता के कारण अप्रमाण को प्रमाण लेता होगा, मगर आप तो बुद्धिनिपुण हैं एवं अपने आपको सर्वज्ञ तुल्य मानते हैं, आपको तो ऐसा नहीं मानना चाहिए। कोई अज्ञानी गुड़ को विष मानता है, तो क्या बुद्धिमान पुरुष भी किसी को मारने के लिए गुड़ को विष मान कर उसे दे सकता है ? अतः प्रत्यक्ष की प्रमाणता और अनुमान की अप्रमाणता सिद्ध करने के लिए इच्छा न होते हुए भी बलात् अनुमान की प्रमाणता चार्वाक के गले आ पड़ी।
और भी हम पूछते हैं कि चार्वाक को किसी व्यक्ति के विषय में निर्णय करना हो कि वह व्यक्ति संदिग्ध है या विपर्यस्त ? तब अनुमान से ही निर्णय कर सकेगा, क्योंकि प्रत्यक्ष से तो वह जान ही नहीं सकता। उस व्यक्ति की आकृति, इंगित, गति, चाल-ढाल, चेष्टा, बोलचाल (भाषण), नेत्र और मुख के विकार आदि के द्वारा ही वह जान सकेगा, जो कि अनुमान का ही एक प्रकार है।
अगर प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मानेंगे तो अपका पुत्र घर से भाग कर चला गया है, अब आपको वह प्रत्यक्ष नहीं दिखाई देगा, तो आपको अनुमान, उपमान, शब्द आदि प्रमाणों का सहारा उसे ढूंढने के लिए लेना पड़ेगा। अगर प्रत्यक्ष प्रमाण को ही आप पकड़े रहेंगे तो पुत्र के अभाव (मृत्यु) का आपको निश्चय करना पड़ेगा,
१. आकारैरिंगितैर्गत्वा, चेष्टया भाषणेन च ।
नेत्र-वक्त्र-विकाराभ्यां, लक्ष्यतेऽन्तर्गतं मनः ।।
-------पंचतन्त्र
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