Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
अनुमानादि प्रमाणों के प्रयोग के अभाव में शायद आप अपने पुत्र के मिलने से वंचित रह जायेंगे ।
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इसलिए अनिच्छा से भी आपको अनुमान की प्रमाणता माननी पड़ेगी । आप स्वर्ग, नरक, मोक्ष या अदृष्ट आदि अतीन्द्रिय पदार्थों का निषेध करते हैं, तो किस प्रमाण के आधार पर करते हैं ? क्या आप स्वर्ग आदि को जानते हैं ? या नहीं जानते ? अगर जानते हैं तो प्रत्यक्ष से जानते हैं या अन्य किसी प्रमाण से ? प्रत्यक्ष से तो आप इन्हें जानते नहीं, क्योंकि स्वर्ग आदि अतीन्द्रिय अमूर्त पदार्थ प्रत्यक्ष से तो गृहीत होते नहीं । अतीन्द्रिय पदार्थ इसी कारण अतीन्द्रिय कहलाते हैं कि वे प्रत्यक्ष के विषय नहीं हैं । अगर वे प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होते तो अतीन्द्रिय ही न कहलाते । तथैव आप प्रत्यक्ष प्रमाण से स्वर्ग और मोक्ष आदि का निषेध भी नहीं कर सकते, क्योंकि आप पहले यह बताइए कि वह प्रत्यक्ष, स्वर्ग और मोक्ष आदि में प्रवृत्त होकर उनका निषेध करेगा या उनसे निवृत्त होकर करेगा ? स्वर्ग और मोक्ष में प्रवृत्त होकर तो प्रत्यक्ष उनका निषेध नहीं कर सकता, क्योंकि प्रत्यक्ष का अभावविषयक वस्तु के साथ विरोध होता है । अर्थात जो वस्तु नहीं है, उसमें प्रत्यक्ष की प्रवृत्ति नहीं होती हैं । आपके मत से स्वर्ग, मोक्ष आदि जब हैं ही नहीं, तब उनमें प्रत्यक्ष की प्रवृत्ति कैसे हो सकती है ? अतः स्वर्ग, मोक्ष आदि में जब प्रत्यक्ष की प्रवृत्ति ही नहीं है, तब प्रत्यक्ष प्रवृत्त होकर स्वर्ग, मोक्ष आदि का निषेध नहीं कर सकता । इसी प्रकार प्रत्यक्ष निवृत्त होकर स्वर्ग, मोक्ष आदि का निषेध करता है, यह बात भी असंगत है । क्योंकि स्वर्ग, मोक्ष आदि का जब प्रत्यक्ष ही नहीं है, तब प्रत्यक्ष से उनका निश्चय हो नहीं सकता ।
तात्पर्य यह है कि व्यापक पदार्थ की निवृत्ति होने पर व्याप्य पदार्थ की भी निवृत्ति मानी जाती है, परन्तु सम्मुख उपस्थित पदार्थों को बताने वाला प्रत्यक्ष प्रमाण, समस्त वस्तुओं का प्रकाशक नहीं होता है, यानी वह समस्त पदार्थों का ज्ञान नहीं करा सकता । अतः प्रत्यक्ष की निवृत्ति होने पर उस पदार्थ की भी निवृत्ति (अभाव) हो जायेगी | ऐसा मान लेने पर तो घर से बाहर निकला हुआ मनुष्य जब घर के आदमियों को प्रत्यक्ष नहीं देखेगा तो वह उनके अभाव का निश्चय कर लेगा । यह अभीष्ट नहीं है । क्योंकि किसी वस्तु के केवल इन्द्रियों से प्रत्यक्ष न होने मात्र से उस वस्तु का अभाव सिद्ध नहीं हो सकता । प्रत्यक्ष से उसका अभाव तभी सिद्ध हो सकता है, जब वह वस्तु प्रत्यक्ष से जानने योग्य हो; फिर भी न जाना जाता हो, तभी प्रत्यक्ष से उसका अभाव सिद्ध होता है । तात्पर्य यह है कि यदि निवर्तमान प्रत्यक्ष वस्तु का अभाव सिद्ध करता है तो घर के अन्दर रखी हुई वस्तु का भी दीवार आदि की ओट के कारण प्रत्यक्ष न होने से अभाव सिद्ध कर देगा ।
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