Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
रख देने पर वह लाल-सा प्रतीत होता है। वस्तुतः स्फटिक लाल है नहीं, वह तो श्वेत ही है, श्वेत ही रहता है तथापि लाल फूल की छाया पड़ने से वह रक्त हुआ-सा जान पड़ता है। इसी तरह सांख्यमत में आत्मा भोगक्रिया रहित है, तथापि बुद्धि के संसर्ग से बुद्धि का भोग आत्मा में प्रतीत होता है। इसी प्रकार जपा-स्फटिकन्यायेन आत्मा की भोगक्रिया मानी जाती है।
__इस दृष्टि से आत्मा की स्थितिक्रिया और भोगक्रिया औपचारिक रूप से मानी गई है, वास्तव में इन दोनों क्रियाओं के लिए आत्मा प्रयत्न नहीं करता। इसीलिए शास्त्रकार ने दूसरी बार कहा कि 'सव्वं कुब्बं न विज्जई' आत्मा समस्त क्रिया का कर्ता नहीं है। इसका रहस्य यह है कि एक देश से दूसरे देश में जाना आदि सभी क्रियाओं को आत्मा नहीं करता है, क्योंकि सर्वव्यापी और अमूर्त होने के कारण आकाश की तरह वह निष्क्रिय है। सांस्यों की धृष्टता : क्या और कैसे ?
ते उ पगभिया-शास्त्रकार का तात्पर्य यह है कि सांख्यमत पूर्वप्ररूपित मतों से भिन्न है, किन्तु वे (सांख्य) अत्यन्त धृष्ट होकर ऐसा कहते हैं कि प्रकृति ही सब कुछ करती है । लेकिन यज्ञ, दान, तप आदि सब कार्य प्रकृति करती है तो उनउन शुभ कार्यो के करने के पुण्यफल की भोक्त्री भी प्रकृति ही होनी चाहिए थी, किन्तु पुरुष के साथ कर्तृत्व-भोक्तृत्व का समानाधिकारण्य छोड़कर प्रकृति को कर्तृत्व और पुरुष को भोक्तृत्व मात्र का वैयधिकारण्य मानते हैं, यह उनकी धृष्टता है । पुरुष चैतन्यवान् है फिर भी नहीं जानता, यह कथन उनकी दूसरी धृष्टता है । इस प्रकार उनकी धृष्टता के और भी नमूने उनके दर्शन-ग्रन्थों से समझ लेने चाहिए । जैसे कि सांख्यकारिका में कहा है
तस्मान्न बध्यते अद्धा न मुच्यते, नाऽपि संसरति कश्चित् ।
संसरति बध्यते मुच्यते च नामाश्रया प्रकृतिः ।
रूपैः सप्तभिरेवमात्मानं बध्नात्यात्मना प्रकृतिः ।। पुरुष बद्ध नहीं होता, और न मुक्त होता है और न एक भव से दूसरे भव में जाता है । अनेक पुरुष का आश्रय लेने वाली प्रकृति ही एक भव से दूसरे भव में जाती है, मुक्त होती है और बद्ध होती है। इस प्रकार सात रूपों में आत्मा को प्रकृति बद्ध करती है । आत्मा नहीं, वही प्रकृति फिर उसे मुक्त करती है।
इतना होने के बाबजूद भी 'आत्मा कर्ता नहीं है' ऐसा कहने वाले सांख्य अकारकवादी हैं । इसलिए धृष्ट हैं। इसीलिए शास्त्रकार ने कहा-'ते उ पगम्भिया ।'
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