Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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समय : प्रथम अध्ययन---प्रथम उद्देशक
मूल पाठ एए पंच महब्भूया, तेब्भो एगोत्ति आहिया। अह तेसि विणासेणं, विणासो होइ देहिणो ।।८।।
संस्कृत छाया एतानि पञ्चमहाभूतानि, तेभ्य एक इत्याख्यातवन्तः । अयं तेषां विनाशेन, विनाशो भवति देहिनः ।।८।।
__ अन्वयार्थ (एए) ये (पंचमहाभूया) पाँच महाभूत हैं । (तेब्भो) इनसे (एगोत्ति) एक आत्मा उत्पन्न होता है, यह उन्होंने (आहिया) कहा है। (अह) इसके पश्चात (तेसि) उन पंच महाभूतों के (विणासेणं) विनाश होने से (देहिणो। आत्मा का (विणासो) विनाश (होड) हो जाता है।
भावार्थ पूर्वगाथा में कहे हुए पृथ्वी आदि पाँच महाभूत हैं। इन पाँच महाभूतों से एक आत्मा उत्पन्न होता है, ऐसा लोकायतिक कहते हैं। फिर वे मानते हैं कि इन पाँच महाभूतों के नष्ट होने से आत्मा का भी नाश हो जाता है।
व्याख्या
पंचमहाभूतवादी चार्वाकमत का स्वरूप और विश्लेषण उपर्यवत दोनों गाथाओं में पंचमहाभूतवादी चार्वाक का स्वरूप बताया गया है। इसके बताने का शास्त्रकार का प्रयोजन यह है कि जिज्ञासु और मुमुक्षु साधक इस बात को भलीभांति समझ जाय कि चार्वाकमतवादी किस प्रकार प्रमाणसिद्ध वीतराग प्ररूपित सत्य सिद्धान्त को ठुकरा कर प्रमाणों और तर्कों से मिथ्या सिद्ध होने वाले मत को पूर्वाग्रहवश पकड़ कर मिथ्यात्व के फन्दे में फंसे रहते हैं और मिथ्यात्व के फलस्वरूप नाना कर्मबन्धन करते रहते हैं, उनसे मुक्त नहीं हो पाते । . संति पंचमहब्भूया-कुछ लोग यह शंका उठाते हैं कि सांख्य एवं वैशेषिक आदि दर्शनों में भी पंचमहाभूत को माना है। जैसे कि सांख्यदर्शन का मत है(सूक्ष्मसंज्ञक) रूपतन्मात्रा से तेज, रमतन्मात्रा से जल, स्पर्शतन्मात्रा से वायु, गन्धतन्मात्रा से पृथ्वी और शब्दतन्मात्रा से आकाश ---इस प्रकार पाँच तन्मात्राओं से पाँच
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