Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
पंचभूतों का गुण चैतन्य से भिन्न यों है- आधार देना और कठोरता पृथ्वी का गुण है, जल का गुण द्रवत्व है, तेज का गुण पाचन है, वायु का गुण चलन है, और अवगाह देना आकाश का गुण है । अथवा पहले बताए गन्ध, रस आदि क्रमशः एक-एक को छोड़कर पृथ्वी जल आदि के गुण हैं । इनमें से किसी भी भूत में चैतन्य का गुण नहीं है | ये सब गुण चैतन्य से भिन्न हैं । इसलिये पृथ्वी आदि ५ भूत चैतन्य से भिन्न गुण वाले हैं । इस दृष्टि से चार्वाक चाहे जितना पच ले, किन्तु पृथ्वी आदि पंच भूतों से चैतन्य गुण की उत्पत्ति सिद्ध नहीं कर सकता क्योंकि इन पंच भूतों का गुण चैतन्य से भिन्न है | अतः इन भूतों में से प्रत्येक का जब चैतन्य गुण नहीं है, तब इनके समूह से चैतन्य गुण की सिद्धि कैसे हो सकेगी ? जैनदर्शन द्वारा इस सम्बन्धी तर्क इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है - जब एक-एक भूत में चैतन्य गुण नहीं है, तो उनके समुदाय से भी चैतन्य गुण उत्पन्न या अभिव्यक्त नहीं हो सकता । चैतन्य अगर पृथ्वी आदि का गुण होता तो पृथ्वी आदि से सचेतन रूप में उपलब्धि होती । किन्तु ऐसी उपलब्धि होती नहीं है । इसलिये चैतन्य एक-एक भूत या भूत समुदाय का गुण हो नहीं सकता । स्वतन्त्र भूत समुदाय का गुण चैतन्य नहीं है, क्योंकि पृथ्वी आदि भूतों का गुण चैतन्य से भिन्न है । भिन्न गुण वाले पदार्थों का जो-जो समुदाय है, उस उस समुदाय में अपूर्व गुण की उत्पत्ति नहीं हो सकती । अतः शरीर में जो चैतन्य दिखाई देता है, वह आत्मा का ही गुण हो सकता है, भूतों का नहीं; क्योंकि भूत चैतन्य गुण के आधार नहीं हैं । इसलिये चैतन्य भूतों का नहीं, उनसे भिन्न आत्मा का ही गुण हैं ।
इसे ही सिद्ध करने के लिये दूसरा हेतु लीजिए
स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र - रूप पाँच इन्द्रियों के उपादान कारण क्रमश: ये हैं- श्रोत्र न्द्रिय का उपादान कारण आकाश है क्योंकि श्रोत्रन्द्रियछिद्र - रूप है, चक्षुरिन्द्रिय का उपादान कारण तेज है, क्योंकि चक्षुरिन्द्रिय तेजोरूप है, घ्राणेन्द्रिय का उपादान कारण पृथ्वी है, क्योंकि घ्राणेन्द्रिय पृथ्वी रूप है । रसनेन्द्रिय का जल और स्पर्शेन्द्रिय का वायु उपादान कारण है । अतः पाँचों इन्द्रियों के जो उपादान कारण (स्थान) हैं, वे ज्ञान रूप न ( स्वयं ज्ञान नहीं कर सकतीं ) होने से भूत समुदाय का गुण चैतन्य नहीं हो सकता ।' चार्वाक मत में शरीर और इन्द्रियों से अतिरिक्त 'आत्मा' नहीं माना गया है। अतः आत्मा को द्रष्टा न मानने के कारण
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१. यहाँ अनुमान इस प्रकार हो सकता है इन्द्रियाँ चैतन्य गुण वाली नहीं हैं, क्योंकि वे अचेतन गुण वाले पदार्थों से बनी हैं। जो-जो अचेतन गुण वाले पदार्थों से बना होता है, वह सब अचेतन गुण वाला होता है, जैसे--- घट-पट आदि ।
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