Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
View full book text
________________
६७
समय : प्रथम अध्ययन -- प्रथम उद्ददेशक
महुआ आदि के सड़ाने पर शराब में मादक शक्ति उत्पन्न होने की तरह भूतों में, चैतन्य शक्ति उत्पन्न हो जाती है । जिस तरह जल में बुलबुले उत्पन्न और विलीन होते रहते हैं, उसी तरह जीव भी इन्हीं भूतों से उत्पन्न होकर इन्हीं में लीन होते रहते हैं । चैतन्य विशिष्ट शरीर का नाम ही आत्मा है ।
चार्वाक के इस मन्तव्य पर शंका होती है-- यदि पाँच महाभूतों से भिन्न कोई आत्मा नाम का पदार्थ नहीं है तो 'वह मर गया यह व्यवहार कैसे सिद्ध होगा, क्योंकि मरते समय भी पाँचों भूत और तज्जन्य चैतन्य शक्ति तो रहती ही है । इसका समाधान चार्वाक की ओर से यह किया जाता है कि शरीररूप में परिणत पंचमहाभूतों से चैतन्य शक्ति प्रकट होने के पश्चात् उन महाभूतों में से वायु या तेज किसी एक भूत या दोनों के हट जाने पर देवदत्त नामक देही का नाश हो जाता है और इसी कारण 'वह मर गया', ऐसा व्यवहार हो जायेगा । परन्तु देही का नाश होने पर कोई आत्मा या जीव नामक पदार्थ शरीर से अलग कहीं चला जाता है, ऐसा नहीं होता क्योंकि आत्मा नामक कोई पदार्थ शरीर से निकल कर कहीं जाते हुए प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर नहीं होता ।
चार्वाक का मत जैनदर्शन की युक्तियों के आगे बिलकुल खण्डित हो जाता है । उसका खण्डन न्याय की भाषा में अनुमान प्रमाण से निम्नोक्त रीति से हो जाता है- "पंच महाभूतों के परस्पर संयोग से ( शरीररूप में परिणत होने पर ) चैतन्य गुण (तथा तज्जनित बोलना - चलना आदि कियारूप गुण) उत्पन्न नहीं हो सकता है, क्योंकि पंच महाभूतों का चैतन्य गुण नहीं है । अन्य गुण वाले पदार्थों के संयोग से अन्य गुण वाले पदार्थ की उत्पत्ति नहीं होती । जैसे बालू के ढेर को पीलने से तेल पैदा नहीं होता, क्योंकि बालू में तेल उत्पन्न करने का स्निग्धता गुण नहीं है । इसी प्रकार पंचभूतों में चैतन्य उत्पन्न करने का गुण न होने के कारण, उनके संयोग से चैतन्य उत्पन्न नहीं हो सकता । इसी बात को नियुक्तिकार कहते हैं
पंचन्हं संजोए अण्णगुणाणं ण चेयणाइगुणो । पंचिन्दियठाणाणं ण अण्णमुणियं मुणइ अण्णो ॥
जिनका गुण चैतन्य से अन्य है, उन पृथ्वी आदि पंचभूतों के संयोग से चेतनादि गुण प्रकट नहीं हो सकते । इसी तरह स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र रूप पाँच इन्द्रियों के जो उपादान कारण हैं, उनका गुण भी चैतन्य न होने से भूत समुदाय का गुण चैतन्य नहीं हो सकता । क्योंकि अन्य इन्द्रिय के द्वारा जानी हुई बात अन्य इन्द्रिय नहीं जान पाती ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org