Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रकाशिका टीका श्रुतस्कंघ २ उ. ४ सू० ४३ पिण्डैषणाध्ययननिरूपणम्
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'गाहावर सुहाओ वा' गृहपति स्नुषा वा गृहपतिपुत्रवधूरित्यर्थः, 'घाइओ वा' धात्री वा, 'दासा वा' दासो वा, 'दासीओ वा' दासी वा 'कम्मकरा वा' कर्मकारो वा 'कम्मकरीओ वा' कर्मकारी वा एतेषां कुलानि उपसंहरन्नाह - 'तहप्पगाराई कुलाई' तथाप्रकाराणि एवं विधानि उपर्युक्तानि कुलानि 'पुरेसंथुयाणि वा' पुरः संस्तुतानि पूर्वपरिचितानि पित्रादिकुलानि पच्छासंथुयाणि वा' पश्चात् संस्तुतानि वा पश्चात् परिचितानि श्वशुरश्चालादि कुलानि वा, एतेषु कुलेषु इत्यर्थः 'पुन्वामेव मिक्खायरियाए अणुपविसिस्सामि' पूर्वमेव प्रथममेव अहं मिक्षाचयार्थम् भिक्षार्थम् अनुप्रवेक्ष्यामि अनुप्रवेशं करिष्यामि 'अविय इत्थल भिस्सामि' अपि च एतेषु स्वजनकुलेषु स्वाभीष्टं लाभं लप्स्ये प्राप्स्यामि, तदेव स्वाभीष्टमाह - 'पिंड चा लोय वा खीरं वा दहिं वा नवणीयं वा' पिंण्डं वा शाल्पोदनादिकम्, लवर्ण वा - लवणमिश्रितम् पुत्र होगा अथवा 'गाहायह धूयाओया' गृहपति की लडकी होगी या 'गाहायइ सुहाओ वा' या गृहपति की पुत्रवधू होगी या 'घाइओ वा' धात्री - धाई होगी, या कोई 'दासा वा' दास - भृत्य 'दासिओ वा' या दासी होगी अथवा 'कम्मकरा चा' कर्मकर - परिचारक नोकर ही परिचित हो सकता है अथवा 'कम्मकरीओ वा' कर्मकरी - नोकरानी ही परिचित हो सकती है इन सब का उपसंहार करते हुए बतलाते हैं- 'तहप्पगाराई कुलाई पुरे संथुयाणि वा, पच्छा संधुयाणि वा' इस प्रकार के कुलों में चाहे वे पूर्व कालिकही संस्तुत परिचित मातापित्रादिका घर हों, या पश्चात् पीछे से संस्तुत परिचित होने वाले श्वशुर विगेरे के घर हों इन घरों में 'पुव्वा मेव भिक्खापडियाए अणुपविसिस्सामि' पहले ही मे भिक्षा aaf के लिये प्रवेश करुंगा क्योंकि इन पूर्व परिचितों के घर में पहले ही भिक्षा के लिये जाने से अपना अमीर अत्यन्त स्वादिष्ट मिष्टान्नादि मिलेगा इस तात्पर्य से कहते हैं कि 'अविय इत्थ लभिस्सामि' क्योंकि इन पूर्वपरिचित पित्रा दिकूलों में मुझे स्वाभीष्ट 'पिंडं वा लोयं वा' शाल्योदनारूप पिण्ड और लवण हाय अथवा 'गाहावइसुण्हाओ वा' गृहपतिनी पुत्रवधू होय अथवा 'घाइओ वा' धार्ड डाय थप 'दासा वा दासीओ वा' हास हासी होय अथवा 'कम्मकरा वा परियार न४२ परिथित हाय अथवा 'कम्मकरीओ वा' नारनी पत्नी ४ परिचित होय परंतु 'तहप्पगाराईं कुलाईं' न्यावा मुणेोभां अर्थात् धरोभां था तो ते 'पुरे संधुयाणि वा पच्छा संधुयाणि वा' पूर्वअझना परिचित भाता पिता दिगेरेना धरी होय अथवा 'पच्छा संथुयाणि वा' पछी श्री परिथित सासु ससरा विगेरेना धरे। होय भावा घरोमां 'पुव्वमेव' सां 'भिक्खापडिया ' लिक्षायर्या भाटे 'अणुपविस्सामि' हुं प्रवेश हरीश डेम डे मा पूर्व કે પશ્ચાત્ પરિચિતાના ઘરમાં પહેલાં ભિક્ષા માટે જવાથી પેાતાને ઈચ્છિત અત્યંત સ્વાहिष्ट भिष्टान्नाहि भजशे मे डेतुथी छे है- 'अविय इत्थलभिस्सामि' या परिचित धरेभां भने स्वाद्दिष्ट वा 'पिडं वा लोयं वा' लात विगेरे पिंड तथा पोताना रसना
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪