Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतकंस्य २ उ. ३ सू. ५५-५६ शय्येषणाध्ययननिरूपणम् ४६७ दिकं कुर्यात् किन्तु 'तस्स अलाभे' तस्य इकडादेः संस्तारकस्य अलाभे तु 'उक्कुडुए वा निसज्जिए वा विहरेजा' उक्कुटुको वा कुक्कुटासनो वा, निषण्णो वा-पद्मासनो वा भूत्या विहरेत, ध्यानादिकं कुर्वन् रात्रिं याषयेत्, कायोत्सर्गापेक्षया एतदासनद्वयमुक्तम् इति 'तच्या पडिमा' तृतीया प्रतिमा-अभिग्रहविशेषरूपाप्रतिज्ञा अवगन्तव्या ॥५५॥
मूलम्-अहावरा चउत्था पडिमा-से भिक्खू वा मिक्खुणी वा, अहा संथरमेव संथारगं जाइज्जा, तं जहा-पुढविसिलं वा कट्टसिलं वा, अहा संथडमेव तस्स लाभे संते संबसे ज्जा, तस्स अलाभे उक्कुडुए वा णिसजिए वा विहरेज्जा, चउत्था पडिमा ॥सू० ५६॥ हुआ संथरा हो या पलाल धान शाली वगैरह के डन्टल से बनाया हुआ कट चटाई वगैरह संथरा हो 'तस्स लाभे संवसेज्जा' इन में से किसी भी एक संथरा के मिलने पर अर्थात जोकि पहले से ही रक्खा हुआ है उस संथरा को मिलने पर उसी संथरा को लेकर उस उपाश्रय में रहना चाहिये एतायता पहले से ही स्थापित इक्कड वगैरह संथरा हो तो उसी को लेकर वहां निवास करते हुए शयनादि करना चाहिये किन्तु 'तस्स अलाभे उक्कुडुए या' पहले से रक्खे हुए इक्कड वगैरह संथरा नहीं हो तो वैसे ही कुक्कुटासन करके ध्यान या शयन करना चाहिये अर्थात् कुक्कुट-मुर्गा के समान अपने हाथ पांव को संकुचित करके घुटने को चिबुक दाढी में सटाकर सोजाना चाहिये अथवा ध्यान करना चाहिये निषण्ण होकर 'णिसज्जिएवा विहरेजा' अर्थात् पद्मासन लगाकर ध्यान वगैरह करते हुए रात को वितायें ये दोनों आसन मुख्यरूप से ध्यान के लिये कहा गया है इस प्रकार यह 'तच्चा पडिमा' तीसरी प्रतिज्ञारूप प्रतिमा अभि. ग्रह विशेष रूप समझनी चाहिये ॥ ५५ ॥ સંસ્તારક હોય અથવા ડાંગર વિગેરેના પરાળથી બનાવેલ સાદડી વિગેરે સંસ્તારક હોય म या संता२४ पैथी । पर ये सस्ता२४ 'तस्स लाभे सबसेज्जो' भणपाथी , જે પહેલેથી જ ત્યાં રાખેલ હોય એ સંસ્તારક મળવાથી એ સંસ્તારકને લઈને એ ઉપાશ્રયમાં વાસ કર. અર્થાત્ પહેલેથી રાખેલ ઈકકડ વિગેરે સંસ્તારક હોય છે તેને લઈને त्या निवास ४शन शयना ४२, ५२तु पडेसेथी रात 'तस्स अलाभे' ७ विगैरे સંસ્તારક ન હોય તે એમને એમ કુકકુટાસન કરીને ધ્યાન કે શયન કરવું. અર્થાત કુકડાની જેમ પિતાના હાથપગને સંકોચીને ઘૂંટણને દાઢીની સાથે રાખીને સુઈ જવું: अथवा ध्यान ४२ मध्ये अथवा 'णिसज्जिए वा' यासन रीने ध्यान विगेरे ४२i रात વિતાવવી. આ બેઉ આસન મુખ્યરૂપથી ધ્યાન માટે કહેલ છે. આ રીતે આ ત્રીજી પ્રતિજ્ઞા રૂપ પડિમા અભિગ્રહ વિશેષ રૂપ સમજવી. . સ. ૫૫ છે
श्री मायारागसूत्र :४