Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारांगसूत्रे
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उज्जाणे' येनैव - यस्यामेव दिशि यस्मिन्नेव भूभागे इत्यर्थः ज्ञातखण्डः - ज्ञातखण्डनामकम् उद्यानम् - आसीत् 'तेणेव उवागच्छन्' तेनैव तस्मिन्नेव भूभागे ज्ञातखण्डनामकोद्याने इत्यर्थः उपागच्छति 'उवागच्छित्ता' उपागम्य-ज्ञातखण्डोद्याने उपागत्य 'इसिं स्यणिप्पमाणं अच्छोप्पेणं भूमिभाषणं' ईषद् अरत्निप्रमाणम् किञ्चिद् न्यूनैकहस्तप्रमाणम् अस्पर्शेनस्पर्शर हितेन भूमिभागेन - एकहस्त प्रमाणप्रायं भूमेरूर्ध्वभागे इत्यर्थः 'सणियं सनियं' शनैः शनैः 'चंदप्पभं सिवियं सहस्वाहिणिं ठवेइ' चन्द्रप्रभाम् - चन्द्रप्रभानाम्नीम् शिविकाम् - दोलाविशेषरूपाम् सहस्रवाहिनीम् - सहस्र जनोद्यमानाम् स्थापयति- स्थापयितुं प्रेरयति 'ठवेत्ता ' स्थापयित्वा - स्थापयितुं प्रेर्य-संस्थाप्य इत्यर्थः 'सणियं सणियं' शनैः शनैः लिये जा रहे थे इसी तात्पर्य से उक्त सभी बांते बतलायी गयी हैं ।
अब आगे की वक्तव्यता बतलाने के लिये कहते हैं- 'निगच्छिता, जेणेव नायसंडे उज्जाणे' 'निकल कर याने उत्तर दिग्वर्ती क्षत्रिय कुल निवास स्थान भूत कुण्डपुर नाम के उपनगर के मध्य भाग से निकलकर जिसी दिशा में याने जिसी भू भाग में ज्ञात खंड नाम का उद्यान था 'तेणेव उवागच्छइ' उसी दिशा में याने उसी भूभाग में (ज्ञातखंड नाम के उद्यान में) भगवन् श्री महावीर स्वामी आते हैं और 'उवागच्छित्ता' उस ज्ञातखंड नाम के उद्यान में आकर 'इसिं स्यणि
माणं' इषद् अरत्नि प्रमाण याने किञ्चिद् न्यून एक हस्तप्रमाण और 'अच्छोप्पेणं' स्पर्श रहिन भूभाग में अर्थात् भूभाग के स्पर्श से रहित याने कुछ कमती एक हाथ (एक फूट) 'भूमिभाएणं' भूमि के उर्ध्व भाग में एतावता भूमि से एक हाथ ऊपर में 'सणियं सणियं चंदप्पभं सिवियं सहस्सवाहिणीओ ठवेइ' - शनैः शनैः धीरे धीरे एक हजार जनों से वहन की जाने वाली चंद्रप्रभा नामकी शिबिका को रखने के लिये कहा और 'ठवेत्ता' भूमि के लगभग एक हाथ उपर ही दिव्य चंद्रप्रभा नाम की शिक्षिका को रख कर उस एक हजार मनुष्य वगैरह
दीक्षा हुए। ४२वा भाटे ४४ २ह्या हता. 'निगच्छित्ता' उत्तर दिशांना क्षत्रियना निवास ३५ मुंडेपुर नामना उपनगरनी मध्यलाग भांथी नी४जीने 'जेणेव नायसंडे उज्जाणे' ने हिशामां એટલે કે भूभागमां ज्ञातखंडे नामतु उद्यान तु' 'तेणेत्र उवागच्छर' से लूलागभां ज्ञातखंडे नामना उद्यानमा लगवान् श्री महावीर स्वामी याव्या 'उवागच्छित्ता' भने ज्ञातखडे उद्यानभां भवीने 'ईसिं स्यणिष्पमा रत्नि प्रमाणु अर्थात् ४ थेछु डुस्त प्रभाणु तथा ‘अच्छोपेणं भूमिभाएणं' स्पर्श विमाना लुलागमां अर्थात् लुलागतो સ્પર્શ કર્યા વિના એટલે કે કંઇક એછા એકત્નિ ભૂમિના ઉર્ધ્વ ભાગમાં એટલે કે ભૂમિથી
हाथ ३५२ 'सणियं सनियं' धीरे धीरे 'चंदप्पभं सिबियं सहस्सवाहिणिं ठवेइ' એક હજાર પુરૂષાથી લઇ જવાતી ચંદ્રપ્રભા નામની પાલખીને રાખી ‘વિજ્ઞા’ અને જમીનના
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪