Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1149
________________ ११३८ आचारांमसूत्र केवलीपत्रताओ धम्माओ भंसिज्जा'शन्तिकेवलिप्रज्ञप्ताद शान्तितः केवलज्ञानि भगवत् प्रतिपादिताद् धर्मात् भ्रश्येत्-भ्रष्टोभवेत् तस्माद् 'नो निग्गंथेणं अभिक्खणं अभिक्खणं' नो निन्थः खलु-साधुः अभीक्षणम् अभीक्ष्णम्-वारं वारं शश्वदित्यर्थः 'इत्यीणं कहं कहित्तए सियत्ति' स्त्रीणां कथा कथयिता-वीसम्बन्धिकामोद्दीपकवार्तालापकारकः स्यात-नो भवेदित्यर्थः इति पहमा भावणा' प्रथमा भावना आगन्तव्या सम्प्रति द्वितीयां भावनां प्ररूप. यितुमाह-'अहावरा दुरूवा भावणा' अथ-प्रथम भावना प्ररूपणानन्तरम् द्वितीयाभावना प्ररूप्यते-'नो निग्गंथे इत्थीणं मणोहराई मणोहराइं इंदियाइं आलोइए निज्झाइत्तए सिया' नो और 'संति केवलो पन्नताओ धम्माओ भंसिजा' शान्तिपूर्वक केवलज्ञानी भागवान् श्री महावीर स्वामी वगैरह तीर्थकर द्वारा प्रज्ञापित याने प्रतिपादित धर्म से भी भ्रष्ट हो जाता है याने युवती स्त्री सम्बन्धी कामोद्दीपककथा वार्तालाप हमेशा करते रहने पर निन्ध जैन साधु शान्ति के लिये तीर्थकर भगवान से प्रतिपादित धर्मकथा से भी गिर जाता है, इसलिये 'नोनिग्गंथेणं अभिक्खणं अभिक्खणं' निग्रन्थ जैन साधु को शश्वत् वार वार हमेशां ही 'इत्थीणं कहं कहित्तए सिया' युवती स्त्रीजाति सम्बन्धी कामोद्दीपक वार्तालाप नहीं करना चाहिये, इस प्रकार चतुर्थ महाव्रत अर्थात् सर्वविध मैथुन विरमण रूप चतुर्थ महाव्रत की यह 'पढमा भावणा' पहली भावना समझनी चाहिये। ___ अब उसी सर्वविध मैथुन विरमण रूप चतुर्थ महाव्रत की द्वितीय भावना का निरूपण करने के लिये कहते हैं-'अहावरा दुच्चा भावणा' अथ सर्वविध मैथुन विरमण रूप चतुर्थ महावत की प्रथम भावना के निरूपण करने के बाद अब अपरा अन्धा दूसरी भावना का निरूपण करते हैं कि-'नो निग्गंथे इत्थीणं मणोहराई समाधिना पy 1 थाय छे. 'संति विभंगा' भने 'ब्रह्मयय ३५ शांतिन A1 वाथी 'संति केवली पण्णत्ताओ धम्म ओ भंसिज्जा' तथा शांती पू ज्ञानी भगवान् श्री મહાવીર સ્વામી વિગેરે તીર્થકરોએ પ્રજ્ઞાપિત કરેલ ધર્મથી પણ ભ્રષ્ટ થાય છે. તેથી 'नो निग्गथेगं अभिरखणं अभिक्खणं इत्थीणं कह कहित्तए सियत्ति पढमा भावणा' युवती સ્ત્રી સંબંધી કામોદ્દીપક કથા વાર્તા કાયમ કરતા રહેવાથી નિર્ચસ્થ મુનિ શાંતિથી તથા તીર્થકર ભગવાને પ્રતિપાદન કરેલા ધર્મથી પતિત થાય છે. તેથી નિન્ય મુનિએ વારંવાર યુવતી સ્ત્રી જાતિના સંબંધમાં કામદ્દીપક વાર્તાલાપ કરે નહીં આ પ્રમાણે ચેથા મહાવ્રત અર્થાત્ સર્વવિધ મૈથુન વિરમણ રૂ૫ ચોથા મહાવ્રતની આ પહેલી ભાવના સમજવી હવે એ સર્વવિધ મૈથુન વિરમણરૂપ ચેથા મહાવ્રતની બીજી ભાવનાનું નિરૂપણ ४२१॥ भाटे ४९ छ-'अहावरा दुच्चा भावणा' सविध भैथुनविरभ३५ या मानतनी पsal भावनानु नि३५९५ ४ा पछी वे अन्य भी मानानु नि३५५५ ७२राय . 'नो निग्गंथे इत्थीणं मणोहराई मजोहराइं इंदियाई आलोइए' नियन्य भुनिये स्त्रीयाना अत्यंत श्री सागसूत्र :४

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