Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ सू० १० अ. १५ भावनाध्ययनम् स्त्रीणाम् पूर्वरतानि-पूर्वकालिककृतस्तीः पूर्वक्रीडितानि-पूर्वकृतकोडारपणादीनि स्मर्ता-स्म रणकर्ता स्यात्-नो पूर्वरतिक्रीडादीनां स्मरणं कुर्यादित्यर्थः तत्र हेतुमाह-'केवळीव्या-आयाण. मेयं' केवली-केवलज्ञानी भगवान् जिनेन्द्रः बयान-आह, आदानम्-कर्मबन्धकारणम् एतत्स्त्री सम्बन्धिपूर्वरतक्रीडादिस्मरणम् कर्मबन्ध हेतुर्भवतीति भावः तथाहि 'निग्गंथे णं इत्थीणं पुग्घरयाई पुगकीलियाई सरमाणे' निग्रन्थः खलु साधुः स्त्रोणां-युवतीनां पूर्वरतानि-कृत पूर्वकालिकरत्वादोनि, पूर्व क्रीडितानि-कृतपूर्वकालिकक्रीडानर्मप्रभृतीनि स्मरन्-'संतिभेया जाव भंसिज्जा' शान्तिभेदका-चारित्रसपाधित्रोटका, शान्तिविभञ्जक:-ब्रह्मचर्य भङ्गकारकः शान्तितः केवलज्ञानिप्रज्ञप्ताद् धर्माद् भ्रश्येत्-भ्रष्टो भवेदिति, तस्माद् 'नो निग्गंथे णं इत्थीणं पुनरयाई पुब्धकीलियाई सरित्तए सियत्ति' नो निर्ग्रन्थः खलु साधुः स्त्रीणां पूर्वरतानि पूर्व सर्वविध मैथुन विरमण रूप चतुर्थ महावत की द्वितीय भावना के निरूपण करने के बाद अब तृतीय भावना का निरूपण करते हैं-'नो निग्गंधेणं इत्थीणं पुव्वरयाई' निर्ग्रन्थ साधु को युवती स्त्रियों के साथ पूर्वकाल में किये हुए रति का स्मरण नहीं करना चाहिये, एवं 'पुबकीलियाई सुमरित्तए सिया' पूर्वकाल में किये हुए रति क्रीडा वगैरह का स्मरण नहीं करना चाहिये, क्योंकि 'केवलीया' केवलज्ञानी भगवान् श्री महावीर स्वामी कहते हैं कि-यह अर्थात् स्त्री सम्बन्धी रतिकोडा वगैरह का स्मरण करना 'आयाणमेयं' कर्मबन्ध का कारण माना जाता है क्योंकि 'निग्गंथेणं पुव्वरयाई' निग्रन्थ जैन साधु मुनि महात्मा स्त्रियों के साथ किये हुए पूर्वकालिक रत्यादि का तथा 'पुत्वकिलियाई पूर्वकालिक किये हुए केलि कीडादि का 'सरमाणे' स्मरण करता हुआ 'संति भेया जाव भंसिज्जा' शान्ति-चारित्र समाधि को तोडनेवाला समझा जाता है एवं शान्ति-ब्रह्मचर्य का भंग करनेवाला भी समझा जाता है तथा शान्तिपूर्वक केवलज्ञानी भगवान् श्री महावीर स्वामी वगैरह से प्रतिपादित किये हुए जैन धर्म से भी भ्रष्ट हो जायगा इसलिये 'नो निग्गंथेणं इत्थीणं पुठवरयाई' निर्ग्रन्थ ३२वामां आवे छ 'नो निगंथेणं इत्थीणं पुवरयाई पुव्वकीलियाई सुमरित्तए सिया' निय- मुनि युवती खियानी साथे पडसा ४२सा २तिमनु भ२१३ ४२७ नही. भ? 'केवलीबूया आयाणमेय' ज्ञानी भावान् श्रीमहावीर स्वामी ४ छ है सीधी तिsts विगेरेनु भ२९ ४२ ते ४मधनु ॥२९ भानामा मात्र छ 'निगंथेणं इत्थीणं पुव्वरयाई पुव्वकीलियाई सरमाणे सतिभेया जाव भंसिज्जा' नियन्य मुनि युवति लियोनी साथे પહેલા કરેલ રત્પાદિનું તથા પહેલાં કરેલ કેલી કીડા વિગેરેનું સ્મરણ કરે તે તે શાંતી સમાધિને તેડવાવાળા મનાય છે. તથા આત્મશાંતિ અને બ્રહ્મચર્યને પણ ભંગ કરનાર મનાય છે. કેવળજ્ઞાની ભગવાન શ્રી મહાવીર સ્વામી વિગેરે સર્વતીર્થકરેએ પ્રતિપાદન કરેલ यमयी ५५ प्रष्ट थाय छे. तेथी 'नो निग्गंग इत्थीगं पुवरयाई पुब्धकीलियाई सरितए
श्री माया
सूत्र:४