Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 1155
________________ आचारांगस्त्रे धिकपानभोजनकर्ता न स निर्ग्रन्थः साधुः 'नो पणीयरसमोयणभोइत्ति' नो प्रणीतरस. भोजनभोजी-नो कथमपि सरसपानभोजनभोक्ता साधुः, साधुः, भावमुनिः नाधिकं नापि सरसं पानभोजनं कुर्यादित्यर्थः इति 'चउत्था भावणा' चतुर्थी भावना अवगन्तव्या, सम्प्रति तस्यैव चतुर्थमहावतस्य पञ्चमी भावना प्ररूपयितुमाह-'अहावरा पंचमा भावणा' अथ-चतुर्थ भावना प्ररूपणानन्तरम्, अपरा-अन्या पश्चमी भावना प्ररूप्य ते–'नो निगथे इत्थीपसुपंडगसंसत्ताई' नो निग्रंन्यः साधुः स्त्रीपशुपण्डकसंसक्तानि-युवतिवनितापशुनपुंसकसम्बद्धानि 'सयणासणाई सेवित्तए सिया' शयनासनानि सेविता-सेवकः स्यात्-साधुः स्त्री पशुनपुंसक भोजन कर्ता होता है वह पास्तव में सच्चा निर्ग्रन्थ जैन साधु नहीं कहा जा सकता, एवं जो साधु 'नो पणीयरसभोयणभोइत्ति' प्रणीत याने अत्यन्त सरस पान भोजन करनेवाला होता है वह भी वास्तव में सच्चा निग्रन्थ जैन साधु नहीं कहा जासकता है एतावता जैन साधु मुनि महात्मा को संयम पालनार्थ अत्यधिक भोजन नहीं करना चाहिये और अत्यन्त सरस पान भोजन भी हमेशा नहीं करना चाहिये इस प्रकार उस सर्वविध मैथुन विरमण रूप चतुर्थ महावत की यह 'च उत्था भावणा' चतुर्थी भावना समझनी चाहिये। ___ अब उसी सर्वविध मैथुन विरमण रूप चतुर्थ महाव्रत की पश्चमी भावना का निरूपण करते हैं-'अहावरा पंचमा भावणा' अथ उसी सर्वविध मैथुन विरमण रूप चतुर्थ महावत की चतुर्थी भावना का निरूपण करने के बाद अथ पंचमी भावना का निरूपण करते हैं, अपरा अन्या पंचमी भावना का निरूपण इस प्रकार है कि 'नो निग्गंथे इत्थी पसुपंडगसंसत्ताई' निर्ग्रन्थ जन साधु को स्त्री पशुपण्डक अर्थात् युवती स्त्री तथा पशु और नपुंसकों से सम्बद्ध 'सयणासणाई' शयन आसनों का 'सेवित्तए सिया' सेवन नहीं करना चाहिये अर्थात जैन साधु युवती से निग्गंथे' तथा रे साधु प्रमाण माथी पधारे पान लोन ४२वा पाडोय छे ते વાસ્તવિક રીતે સાચા નિગ્રંથ મુનિ કહેવાતા નથી કહેવાનો ભાવ એ છે કે જનમુનિએ संयमना पासन भाट 'जो पणीयरसमोइत्ति' पधारे ५३तु मान ४२ नही तो सत्य'त सरस पानसान पर उमेश २ नही 'चउत्थी भावणा' 241 प्रमाणे ये सविध મૈથુન વિરમણ રૂપ ચેથા મહાવ્રતના ચોથી ભાવના સમજવી. હવે એ સર્વવિધ મૈથુન વિરમણ રૂપ ચેથામહાવતની પાંચમી ભાવનાનું નિરૂપણ ३२वामां आवे छे-'अहावरा पंचमा भावणा' से सविध भैथुन वि२५ ३५ याथा महाવ્રતની ચાથી ભાવનાનું નિરૂપણ કરીને હવે પાંચમી ભાવનાનું નિરૂપણ કરવામાં આવે છે 'नो निग्गथे इत्थी पसुपंडगसंसत्ताई सयणासणाई सेवित्तए सिया' निन्य भुमिमें सी પશુ પંડક અર્થાત્ યુવતી સ્ત્રી તથા પશુ અને નપુંસકથી યુક્ત શયન આસનોનું સેવન કરવું નહીં અર્થાત્ જૈન મુનિએ યુવતી સ્ત્રી પશુ અને નપુંસકના સંસર્ગ વાળા શયન श्री सागसूत्र :४

Loading...

Page Navigation
1 ... 1153 1154 1155 1156 1157 1158 1159 1160 1161 1162 1163 1164 1165 1166 1167 1168 1169 1170 1171 1172 1173 1174 1175 1176 1177 1178 1179 1180 1181 1182 1183 1184 1185 1186 1187 1188 1189 1190 1191 1192 1193 1194 1195 1196 1197 1198 1199