Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1148
________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ सू० १० अ. १५ भावनाध्ययनम् ११३७ पञ्च भावना भवन्ति 'तत्यिमा पढमा भारणा' तत्र-पञ्चभावनासु इयम्-वक्ष्यमाणस्वरूपा प्रथमा भावना अवगन्तव्या-'नो निग्गये अभिक्खणं अभिक्खणं' नो निर्ग्रन्थः साधुः अभीक्ष्यम् अभीक्ष्णम्-शश्वत् 'इत्थीणं कहकहित्तए सिया' स्त्रीणाम् कां कथयिता स्यात्, साधुः स्त्री सम्बन्धिकामोत्पादकवार्तालाप न कुर्यादित्यर्थः, तत्र हेतुमाह- केवलीव्या-आयाण मेयं केवली-केवलज्ञानी भगवान् तीर्थकृद् ब्रूयात् -वदति-आदानम्-कर्मबन्धकारणम् एतत्-स्त्रीसम्बन्धिकामकथाकरणम् कर्मबन्धहेतुर्भवतीतिभावः, तथाहि 'निग्गथे णं अभिवखणं अभिक्खणं' निग्रन्थः खलु साधुः अभीक्ष्णम् अभीक्षणम्-वारंवारम 'इत्थीणं कहं कमाणे स्त्रीणां कथा वार्तालापम् कथयन्-कुर्वन् 'संतिभेया संतिविभंगा' शान्तिभेदक:चारित्रसमाधिभेदकारको भवति, एवं शान्तिविभञ्जक:- ब्रह्मचर्यभङ्गकारकश्च भवति 'संति मण रूप चतुर्थ महाव्रत की ये वक्ष्यमाण रूप पांच भावनाएं होती हैं, उन 'तथिमा पढमा भावणा' चौथा महाव्रत की पांच भावनाओं में यह वक्ष्यमाण स्वरूपवाली पहली भावना जाननी चाहिये 'नो निग्गंथे अभिक्खणं अभिक्खणं' निर्ग्रन्थ जैन साधु को अभीक्षण अर्थात सतत काल हमेशा 'इत्थीणं कहं कहित्तए सिया' स्त्रियों की कथा नहीं करनी चाहिये, याने जैन साधु स्त्री सम्बन्धी कामोत्पादक वार्तालाप नहीं करें इस का कारण बतलाते हैं-'केवलीबूया आयाणमेयं' केवलज्ञानी भगवान श्री महावीर स्वामी कहते हैं कि-यह स्त्री सम्बन्धी कामोद्दीपक कथा वार्तालाप करना आदान याने कर्मबन्ध का कारण माना जाता है क्योंकि 'निग्गंथेणं अभिक्खणं अभिक्खणं निर्ग्रन्थ जैन साधु शश्वत् हमेशा बार बार 'इस्थीणं कहं कहेमाणे स्त्रियों की कथा वार्तालाप करता हुआ या स्त्री सम्बन्धी कामोद्दीपक कथा करने वाला 'संतिभेया' शान्ति भेदक याने चारित्र समाधि का भेदक होता है याने जैन साधु को स्त्री सम्बन्धी चर्चा करते रहने पर चारित्र का भंग हो जाता है 'संतिविभंगा' शान्ति समाधि का भी भंग कारक होता है प्रतनी या पक्ष्यमा ५४२नी पाय मापनासा हाय छे. 'तथिमा पढमा भावणा' को पाये भावनामा मा पक्ष्यामा ४२नी पडसी लावना छ. म -'नो निग्गंथे अभिक्खणं अभिक्खणं इत्थीणं कह कहित्तए सिया' नियन्य भुनिये ममी अर्थात सतत १२७मेशा સ્ત્રિ સંબંધી વાત કરવી નહીં એટલે કે જૈનમુનિએ સ્ત્રી સંબંધી કામોત્પાદક વાત ४२वी नही १२५ 'केवलीबूया आयाणमेयं' ज्ञानी भगवान् श्री महावीर स्वामी કહ્યું છે કે આ સ્ત્રી વિષયક કામોત્પાદક કથા વાર્તાલાપ કરે તે આદાન–અર્થાત્ કર્મ धनु ४।२७ मनाय छे. 'निग्गंथे णं अभिक्खणं अभिक्खग इत्थीणं कहं कहेमाणे संतिभेया' કેમ કે નિગ્રંથ મુનિએ વારંવાર સ્ત્રિ સંબંધી કથા વાર્તાલાપ કરવાથી અથવા સ્ત્રી સંબંધી કામોદ્દીપક કથા કરવાથી શાંતિભેદક અર્થાત ચારિત્ર સમાધિના ભેદક થાય છે. એટલે કે સાધુએ સ્ત્રી વિષયક ચર્ચા કરતા રહેવાથી ચારિત્રને ભંગ થાય છે. અને શાંતિ आ० १४३ श्री सागसूत्र :४

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