Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1146
________________ ११३५ - - मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २२. १० अ. १५ भावनाध्ययनम् सम्प्रति चतुर्थ महाव्रतं सर्वमैथुनविरमणरूपं प्ररूपयितुमाह- महावरं च उत्थं महब्धयं' अथ-तृतीयमहाव्रतप्ररूपणानन्तरम् अपरम्-अन्यत् चतुथे महाव्रतम्-सर्वविधमैथुनविरमण. रूपम् ‘पच्चक्खामि सव्वं मेहुणं' प्रत्याख्यामि-प्ररूपयामि सर्वप्रकारकं मैथुनम्-विषयसेवनम् ज्ञप्रज्ञया ज्ञाखा प्रत्याख्यानप्रज्ञया मैथुनस्य प्रत्याख्यानं परित्यागं करोमोतिभावः तथाहि'से दिवं वा माणुस्सं वा तिरिक्खजोणियं वा' स-साधुः दिव्यं वा-देवसम्बन्धि वा मानुष्यं वा-मनुष्यसम्बन्धि वा, तिर्यगयोनिक वा-तिर्यग्रयोनिसम्बन्धि वा-पशुपक्ष्यादि सम्बन्धि इत्यर्थः 'नेव सयं मेहुणं गच्छेन्जा' नैव स्वयं मैथुनम-विषयभोगं गच्छेत्-कुर्यात् 'तं चेवं भदिनादाणवत्तब्धया भाणिय व्या जाव वोसिगमि' तच्चैव-पूर्वोक्तरीत्येव अत्रापि अदत्तादानवक्तव्यता - अदत्तादानविषयिणी या वक्तव्यता उक्ता सा भणितव्या-प्रदत्त दानवक्तव्यतानुसारे___ अब तृतीय महावत के निरूपण करने के बाद चतुर्थ महावत सर्वविध मैथुन विरमण रूप का निरूपण करते हैं-'अहावरं च उत्थं महव्वयं पच्चक्वामि' अथ अदत्तादान विरमण रूप तृतीय महावन के निरूपण करने के बाद अब अपर अन्य चतुर्थ महाव्रत अर्थात् सर्वविध मैथुन विरमण रूप चतुर्थ महायत का निरूपण करता हूं याने सब प्रकार के विषय सेवन रूप मेथुन को ज्ञप्रज्ञा से जानकर प्रत्याख्यान प्रज्ञा से मैथुन का प्रत्याख्यान परित्याग करता हूं, जैसे कि-'से दिवं वा माणुस्सं वा' वह साधु दिव्य याने देव सम्बन्धी अथवा मनुष्य सम्बन्धी तथा 'तिरिक्खजोणियं वा' तिर्यग्योनिक याने पशुपक्षी वगैरह तिर्यग्योनि सम्बन्धी मैथुन का याने विषय भोग का 'नेव सयं मेहुणं गच्छेजा' स्वयं मैथन सेवन कभी भी नहीं करे 'तं चेवं अदिन्नादाण वत्तव्वया भाणियव्या' यहां पर पूर्वोक्त रोति से अदत्तादान विरमण विषय की जो वक्तव्यता पहले कह चुके है वह सारी वक्तव्यता समझनी चाहिये, अर्थात् अदत्तादान विरमण को वक्तव्यता के अनुसार ही मैथुन विरमण विषय में भी कहना चाहिये इस प्रकार उक्तीति - હવે ત્રીજા મહાવ્રતનું નિરૂપણ કરીને ચોથા મહાવત સર્વવિધ મૈથુન વિરમણનું नि३५५५ ४२ छ.-'अहावरं चउत्थं महव्वयं पच्चक्खामि सब मेहुणं' सत्ता हान विभाग રૂપ ત્રીજા મહાવ્રતનું નિરૂપણ કરીને હવે ચોથા મહાવ્રત અર્થાત સર્વવિધ મૈથુન વિરમણ રૂપ ચોથા મહાવ્રતનું નિરૂપણ કરું છું. એટલે કે બધા પ્રકારના વિષય સેવનરૂપ મિથનને જ્ઞપ્રજ્ઞાથી જાણીને પ્રત્યાખ્યાન પ્રજ્ઞાથી મિથુનનું પ્રત્યાખ્યાન અર્થાત્ પરિત્યાગ કરું છું 3-से दिव्वं वा' ते साधुये हे समधी अथवा 'माणुस्सं वा' मनुष्य समधी तथा 'तिरिक्खजोणिय वा' तियन्य:नि४ मेटले पशु पक्षी विगेरे तिय योनि समाधी भैयुनन। अर्थात् विषय सोगनु 'नेवसयं मेहुणं गच्छेज्जा' पात सेवन ४२वुनही 'तं चेव अदिण्णादाणवत्तव्वया भ णियव्वा' ही पूर्वरित ४थन प्रमाणे महत्ताहान विरम समाधी સમગ્ર કથન સમજી લેવું. અર્થાત્ અદત્તાદાન વિરમણના કથનાનુસાર જ મૈથુન વિરમણના श्री सागसूत्र :४

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