Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 1145
________________ आचारांगसूत्रे वग्रहयाचको भवेद् 'इइ पंचमा भावणा' इति पञ्चमीभावना अवगन्तव्या, सम्प्रति तृतीय महाव्रतवक्तव्यतामुपसंहरनाह-'एतावया तच्चे महत्वए' एतावता-उक्तप्रकारेण तृतीये महावते 'सम्मं कारण फासिए पालिए तीरिए जाव आणाए आराहिए यावि भवइ' सम्यक्-सम्यक् तया कायेन स्पर्शितं पालितं तीर्ण यावत्-कीर्तितम् अवस्थितम्-अवस्थापितम् आज्ञयातीर्थकदादेशेन आराधितं चापि भवति इतिरीत्या 'तच्चं भंते ! महल' हे भगान् ! तृतीयं महाव्रतम् अवगन्तव्यम्, क्षेत्रकालावग्रह की याचना करें किन्तु ‘णो अणणुवीई उग्गह जाई' अविच रपूर्वक याने विचार किये बिना ही परिमित क्षेत्रकालावग्रह की याचना नहीं करें, इस प्रकार अदत्तादान विरमण रूप तृतीय महावत की यह 'इइ पंचमा भावणा' पंचमी भावना समझनी चाहिये। अब तृतीय महाव्रत रूप अदत्तादान विरमण की उक्त वक्तव्यता का उपसंहार करते हैं 'एनावया तच्चे महत्वए' उक्त रीति से तृतीय महावत अर्थात् अदत्तादान विरमण रूप ‘सम्मं काएण फासिए पालिए' सम्यक् अत्यन्त समीचीन रूप से काय द्वारा स्पर्शित तथा परिपालित होकर एवं 'तीरिए जाव आणाए आराहिए यावि भवइ' तीर्ण-पारित तथा यावत् कीर्तित-परिकीर्तित और अवस्थापित तथा भगवान् श्री महावीर स्वामी की आज्ञा से आराधिन भी होता है तच्चं भंते महव्वयं' इस प्रकार हे भदन्त ! अदत्तादान विरमण रूप तृतीय महाव्रत समझना चाहिये, यह बात गौतमादि गणधर भगवान श्री महावीर स्वामी के निकट पच्चखान लेते समय हृदय में संकल्प करते हुए भगवान से प्रतिज्ञा करते हैं। રિદ્દિકા’ સાધમિક સાધુ ઓ પાસેથી અવિચાર પૂર્વક જ ક્ષેત્રકાળ મર્યાદ્વારૂપ અવગ્રહના યાચક હોવાથી અદત્ત વસ્તુને પણ ગ્રહણ કરી લે તેથી સંયમની વિરાધના થાય છે. 'तम्हा अणुवीई मिउग्गह जाइ से निग्गंथे साहम्मिएसु' तथा विया२ पूर्व में भूनिये सामि साधु पांसेयी ५२मित क्षेत्रावनी यायना ४२वी, परंतु 'नो अणणुवीई उग्गह जाइ इइ पंचमा भावणा' मविया२५४ अर्थात् विया२ र्या विना पारभित ક્ષેત્રકાલાવગ્રહની યાચના કરવી નહીં. આ પ્રમાણેની આ પાંચમી ભાવના સમજવી. - હવે ત્રીજા મહાવ્રતરૂપ અદત્તાદાન વિરમણના પૂર્વોક્ત કથનને ઉપસંહાર કરે છે – 'एतावया तच्चे महत्वए' से प्रमाणे alon भारत अर्थात् महत्तहान १२म ३५ त्री महावत 'सम्मं काएण फासिए' सभ्यः सत्यत सुया३ प्रारथी य द्वारा २५शित पालिए तीरि' तथा ५लित धन तथा ती तथा 'जाब आणाए आराहिए यावि भवई' થાવત્ કીર્તિત પરિકીર્તિત અને અવસ્થાપિત તથા ભગવાન શ્રી મહાવીર સ્વામીની माशाना माराध थाय छे. 'तच्चं भंते ! महताय' या प्रमाणे भगवन् महत्तान વિરમણ રૂપ ત્રીજુ મહાવ્રત સમજવું. આ પ્રમાણે ગૌતમાદિ ગ ધરે ભગવાન શ્રી મહાવીર સ્વામીની પાસે પચ્ચખાન લેતી વખતે હૃદયમાં સંક૯પ કરીને ભગવાન પાસે પ્રતિજ્ઞા કરે છે. श्री आया। सूत्र : ४

Loading...

Page Navigation
1 ... 1143 1144 1145 1146 1147 1148 1149 1150 1151 1152 1153 1154 1155 1156 1157 1158 1159 1160 1161 1162 1163 1164 1165 1166 1167 1168 1169 1170 1171 1172 1173 1174 1175 1176 1177 1178 1179 1180 1181 1182 1183 1184 1185 1186 1187 1188 1189 1190 1191 1192 1193 1194 1195 1196 1197 1198 1199