Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ सू० ९ अ. १५ भावनाध्ययनम्
१०७७ 'चंदप्पमाओ सोयानो' चन्द्रप्रभातः शिविकातः 'सहस्सवाहिणीयाओ पच्चोयरइ' सहस्रवा हिनीतः-सहस्रवाहिनी चन्द्रप्रभानाम्नी शिविकातः इत्यर्थः प्रत्यवतरति-पच्चोयरित्ता' प्रत्यवतीर्य सणियं सणिय' शनैः शनैः 'पुरत्याभिमुहे' पौरस्त्याभिमुख:-पूर्वाभिमुख इत्यर्थः 'सीहासणे निसीयइ' सिंहासने निषीदति-उपविशति 'आभरणालंकारं ओमुअइ' आभरणालंकारम्-भूषण नातम् अवमुश्चति-परित्यजति, शरीगद् अवतारयतीति भाव: 'तओ से वहन को जाती हुई चंद्रप्रभा नामकी शिविका से भगवान् श्री महावीर स्वामी उतर रहे है याने श्री महावीर स्वामी-'सणिय सणिय'--धीरे धीरे उस-'चंद्रप्पभाओ सीयाओ सहस्सवाहिणीओ पच्चोयरई' चंद्रप्रभा नामकी पालको से उतरे और-पच्चोयरित्ता'-उस शिबिका पर से 'सणिय सणिय पुरत्याभिमुहे'-धीरे धीरे उतर कर पौरस्त्याभिमुख अर्थात पूर्वाभिमुख होकर-'सीहासणे निसीयइ'-सिंहासन पर बैठते हैं याने उस शिविका पर से उतर कर पूर्वाभिमूख होकर सिंहासन भगवन श्री महावीर बैठ गये और सिंहासन पर बैठकर-'भाभरणालंकारं ओमुयइ' अपने शरीर में पहने हुए आभरण अलंकार जात को उतारते है याने भगवान् श्री महावीर ने सिंहासन पर पूर्वाभिमुख होकर बैठ कर अपने शरीर से भूषण जात को उतारा, एतावता उपयुक्त वाक्य सन्दर्भ का यह आशय है कि-शिविका पर चढे हुए भगवान् श्री महावीर स्वामी उत्तर दिशा में विराजमान क्षत्रिककुल के निवासस्थानभूत कुण्डपुर नाम के उपनगर के मध्य भाग से निकलकर ज्ञातखण्ड नामके उद्यान में आकर भूमि से पौने एक हाथ ऊपर ही उस दिव्य शिषिका को रखने के लिये प्रेरणाकर उस अलौकिक दिव्य नानारत्नमणि सुवर्णादि से समय मे 12 3५२ थे यि द्रमा शिमिताने माने 'सणिय सणियं चंदप्पभाओ सीयाओ सहस्सवाहिणीओ पच्चोयर३' से ४ र ५३षावा! पहुन राती प्रमा नामानी पानीमाथी भगवान् श्री महावीर स्वामी धीरे धीरे उत्तर्या 'पच्चोयरित्ता' मने से शि४ि। ५२थी धीरे धीरे उतरीन 'सणियं सणियं पुरस्थाभिमुहे सीहासणे निसीयइ' भने એ પાલખી પરથી ધીરે ધીરે ઉતરીને પૂર્વાભિમુખ થઈને અર્થાત્ પૂર્વ દિશા તરફ મુખसमान थे सिंहासन५२ मेड1. मने ये शते सिंहासन ५२ मेसीने 'आभरणालंकारं ओमुयई' પિતે શરીરપર ધારણ કરેલા બધાજ આભૂષણોને ઉતારી નાખ્યા, એટલે કે ભગવાન શ્રીમહા વીર સ્વામીએ પૂર્વાભિમુખ સિંહાસન પર બેસીને પોતાના શરીર પરના બધાજ આભૂ. પણે ઉતાર્યા, ઉપરોક્ત વાક્ય સંદર્ભનો આશય એ છે કે પાલખી પર બેઠેલા ભગવાન વદ્ધમાન શ્રી મહાવીર સ્વામી ઉત્તર દિશામાં આવેલ ક્ષત્રિયકુલનિવાસ સ્થાનરૂપ કુડપુર નામના ઉપનગરની મધ્યમાંથી નીકળીને જ્ઞાતખંડ નામના ઉદ્યાનમાં આવીને જમીનના ઉપર પણ હાથ જેટલે એ દિવ્ય શિબિકાને રખાવીને એ અલૌકિક દિવ્ય અને અનેક
श्री सागसूत्र :४