Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कघ २ सू. ९ अ. १५ भावनाध्ययनम्
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शरीरगतममत्वाहितः सन् 'जे केइ उवसग्गा समुप्पज्जंति' ये केचिद् उपसर्गाः - विघ्नोपद्रवाः समुत्पद्यन्ते - समुत्पत्स्यन्ते, तान् उपसर्गान् नामग्राहं गृहीत्वा आह- 'तं जहा - दिव्वा वा माणुस वा तेरिच्छिया वा' दिव्याः वा - देवसम्बन्धिनो वा, मानुष्या वा मनुष्य सम्बन्धिनो वा, तैरश्चिका वा, तिर्यक् सम्बन्धिनो वा स्युः 'ते सव्वे उवसग्गे समुत्पन्ने समाणे' तान् सर्वान् उपसर्गान् विघ्नोपद्रवरूपान् समुत्पन्नान् सतः 'सम्मं सहिस्सामि' सम्यक् सम्यक्या क्लेशं विनैव इत्यर्थः सहिष्ये - सहनं करिष्ये 'खमिस्सामि अहियास इस्सामि' क्षमिष्ये-क्षमां उवसग्गा' जो कोइ भी उपसर्ग याने विघ्नबाधायें 'समुप्पज्जेति' उत्पन्न होगी उन सभी उपसर्गों को याने विघ्न बाधाओं को चाहे वे सभी विघ्नोपद्रव रूप विघ्न बाधाये 'तं जहा' जैसे की 'दिव्वा वा माणुला वा' दैवी ही क्यों नहीं अर्थात् वे सभी विघ्न बाधाएं चाहे देव सम्बंधी हो याने देवों द्वारा की गयी हों या मनुष्य संबंधी हों याने मनुष्यों द्वारा की गयी हों या 'तेरिच्छिया वा' तिर्यक् संबंधी हो याने तिर्यग योनिवाले प्राणियों द्वारा की गयी हो 'ते सव्वे उवसग्गे' उन सभी विघ्न बाधा रूप उपसर्गों को 'समुप्पन्ने समाणे' सम्यग् रीति से याने क्लेश के fear ही 'सम्मं सहिस्सामि' सम्यक् प्रकार से सहन करूंगा और 'खमिस्सामि' क्षमा करूंगा तथा ' अहिआसइस्सामि' अधिक सहन करूंगा याने खेद रहित होकर सहन करूंगा एतावता भगवान् श्री महावीर स्वामीने दीक्षा ग्रहण करने के बाद दीक्षा महोत्सव में आये हुए अपने भाई बन्धु ज्ञाति मित्र कुटुम्ब परिवारों को वापस भेज कर बारह वर्ष तक शरीर को व्युत्सृष्ट कर और देह की ममत्व भावना से रहित होकर देवी या मानुषी या तिर्यक्र योनि सम्बन्धी सभी प्रकार की પન્ત વ્યુત્સુકાય અર્થાત્ શરીરને વ્યુત્સગ કરી અને શરીરના મમત્ત્વભાવથી રહિત थाने 'जे केइ उवसग्गा समुप्पज्जंति' ने पाय उपसर्ग अर्थात् विघ्न माधाओ भावशे એ બધા ઉપસગેĪને ચહે તે બધા વિજ્ઞમાધા ‘ન્નિવ” દૈવી અર્થાત્ દેવસંબંધી હાય भेटले } हेवेो द्वारा ४२वामां आवेस होय ! 'माणुसा वा' भनुष्य संबंधी होय भेटो } भनुष्यो द्वारा ४२वामां आवेल होय अथवा 'तेरिच्छिया वा' तिर्य संबंधी होय भेटते है-तिर्यथ योनि वाणा आशियो द्वारा रवामां आवे होय 'ते सव्वे उवसग्गे समुन्ने समाणे' ये मधान उत्पन्न थयेस उपसर्गाने 'सम्मं सहिस्सामि' सभ्य प्रहारथी अर्थात् भनम देश याभ्या विना ४ साहुन पुरीश भने 'खमिस्सामि' क्षमा हरीश तथा 'अहिआसइस्लामि' गधि सहन हरीश अर्थात् मेह रहित थाने सहन हरीश કહેવાના ભાવ એ છે કે- ભગવાન્ શ્રીમહાવીર સ્વામીએ દીક્ષા ધારણ કર્યાં પછી દીક્ષા મહેાત્સવમાં આવેલા પોતાના ભાઇ બન્ધુ જ્ઞાતિ મિત્ર અને કુટુંબ પરિવારને પાછા વાળીને ખાર વ પન્ત શરીરની મમતા ભાવને છેડીને દૈવી કે માનુષી અથવા તિયચ યુનિ સબંધી બધા જ પ્રકારના વિઘ્ન બાધાઓને શાંતિપૂર્વક સહન કરવાની પ્રતિજ્ઞા કરી
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪