Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 1107
________________ आचारांगसूत्रे द्भिः भूमिभागे अस्तरद्भिः आगच्छद्भिः भवनपत्यादि देवानाम् अवपतनोत्पतनसमये एको महान् दिव्यो देवोद्योत:-देवप्रकाशः देवसन्निपातः देवकह कहकः देवकलकलः उत्पि जलभूतश्चापि अभवत्-संजातः इति भावः 'तओणं समणे भगवं महावीरे' ततः खलु-देवप्रकाशानन्तरम् श्रमणो भगवान् महावीरः 'उपपन्नवरनाणदंसणधरे' उत्पन्नवरज्ञानदर्शन धरः-समुत्पन्नप्रधानकेवलज्ञानदर्शनधारको भूत्वा- 'अप्पाणं च लोगं च अभिसमिक्ख' महान् दिव्य विलक्षण देवोद्योत अर्थात् देवप्रकाश और देव सन्निपात याने देवों का निपतन और देव कहकहक अर्थात् देवों का कलकल शब्द उत्पिञ्जलभूत याने एकत्रित होकर उत्पन्न हुआ एतावता भगवान् श्री महावीर स्वामी के केवलज्ञान तथा केवलदर्शन की उत्पत्ति काल में भवनपति वानव्यन्तरज्योति षिक और वैमानिक देवोंने और देवियोंने आनन्द के मारे फूले नहीं समाते हुए सुमेरु पर्वत पर चढते उतरते समय एक महान् दिव्य प्रकाश के साथ विलक्षण कलकल मधुर अव्यक्त ध्वनि की अर्थात् भगवान् श्री महावीर स्वामी की जय जयकार सूचक अत्यन्त रमणीय शब्द किया। अब भगवान् श्री महावीर स्वामी का देवादि के प्रति क्रम से धर्मोपदेश का निरूपण करते हैं-'तओणं' उसके बाद अर्थात् भगवान् श्री महावीर स्वामी को केवलज्ञान और केवलदर्शन के उत्पन्न होने के समय में भवनपत्यादि देवों और देवियों के दिव्य प्रकाश के साथ दिव्य कलकल शब्द होने के बाद 'समणे भगवं महावीरे' श्रमण भगवान् श्री महावीर स्वामीने 'उप्पन्न वरनाणदसणधरे उत्पन्न अत्यन्त श्रेष्ठ केवलज्ञान और केवलदर्शन को धारण करते qua 'उप्पिंजलगभूए यावि हुत्था' से मोटी ६०५ मने सिक्षY वोधात अर्थात् દેવપ્રકાશ અને દેવસન્નિપાત એટલે કે દેવેનું પતન તથા દેવ કહકહક અર્થાત દેને કલકલશબ્દ ઉપિંજલભૂત અર્થાત એકઠો થઈને ઉત્પન્ન થયે, એટલે કે વીતરાગ ભગવાન વર્ધમાન મહાવીર સ્વામીને કેવળજ્ઞાન તથા કેવળદર્શન ઉત્પન થયું ત્યારે ભવનપતિ વાનર્થંતર તિષિક અને વૈમાનિક દેવેએ અને દેવી એ આનંદને લઈને પ્રફુલતાને લઈ સુમેરૂ પર્વત પર ચઢવા ને ઉતરવાને સમયે એક મોટા દિવ્ય પ્રકાશની સાથે વિલક્ષણ કલકલ મધુર અવ્યક્ત ધ્વની કર્યો અર્થાતુ ભગવાન શ્રી મહાવીર સ્વામીના વિજય સૂચક જયજયકારને અત્યંત રમણીય નાદ કર્યો. હવે ભગવાન શ્રી મહાવીર સ્વામીએ દેવાદિને કમથી કરેલ ધર્મોપદેશનું નિરૂપણ ४२वाम मा छ-' तओ णं समणे भगवं महावीरे उत्पन्नवरनाणदसणधरे' ते पछी અર્થાતુ ભગવાન શ્રી મહાવીર સ્વામીને કેવળજ્ઞાન અને કેવળદર્શન ઉત્પન્ન થયું તે વખતે ભવન પત્યાદિ દેવ અને દેવીના દિવ્યપ્રકાશની સાથે દિવ્ય કલકલને મધુર શબ્દ થયા पछी श्रम मवान श्री महावीर स्वामीन 'उप्पन्न वरनाणदंसणधरे अपाणं च लोगं श्री सागसूत्र :४

Loading...

Page Navigation
1 ... 1105 1106 1107 1108 1109 1110 1111 1112 1113 1114 1115 1116 1117 1118 1119 1120 1121 1122 1123 1124 1125 1126 1127 1128 1129 1130 1131 1132 1133 1134 1135 1136 1137 1138 1139 1140 1141 1142 1143 1144 1145 1146 1147 1148 1149 1150 1151 1152 1153 1154 1155 1156 1157 1158 1159 1160 1161 1162 1163 1164 1165 1166 1167 1168 1169 1170 1171 1172 1173 1174 1175 1176 1177 1178 1179 1180 1181 1182 1183 1184 1185 1186 1187 1188 1189 1190 1191 1192 1193 1194 1195 1196 1197 1198 1199