Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारांगसो
Fennel
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पुत्रवपूर्वा 'जाव कम्मकरीमो वा' यावत्-धात्री वा दासो वा दासी वा कर्मकरो वा कर्मकरी वा 'अन्नमन्नं' अन्योन्यं परस्परम् 'उक्कोसंति वा उत्क्रोशन्ति वा 'तहेव' तथैव-आक्रोशन्ति वा 'तिल्लादि सिणाणादि सीओदगवियडादि' तैलादि-स्नानादि-शीतोदकविकटादि'निगिणाइ वा जहा सिनाए आलावगा नवरं उग्गहवत्तव्यया' नग्नादीनां वा यथा शय्यायाम्-शय्यैषणायाम् आलापकाः उताः तयैव अत्रापि वक्तव्याः, नवरम् शय्यैषणापेक्षया विशेषस्तु अत्र अग्रवक्तव्यता वोध्या तथा च उपाश्रयनिकटे तैलादिना हस्तपादादिकम् रीओ वा' यावत्-गृहपति की धात्री धाई, या गृहपति का दास या गृहपति की दासी या गृहपति का कर्मकर नोकर या गृहपति की कर्मकरी नोकरानी 'अन्नमन्नं उक्कोसंति वा' परस्पर में चिल्लाते हैं या परस्पर में आक्रोश करते हैं या 'तहेव तिल्लादि सिणाणादि तैल वगैरह से मालिश करते हैं या स्नान वगैरह करते हैं या 'सीओदगवियडादि निगिणाइ वा' अत्यन्त ठण्डा पानी से नहाते हैं अर्थात तेल वगैरह से हाथ पैर का मर्दन करते हैं या नानीय चूर्ण आमला वगैरह से शरीर का मर्दन करते हैं या लोत्र पाउडर साबुन वगैरह से शरीर को साफ सुथरा कर रहे हैं और अत्यन्त शीतोक से या अत्यन्त उष्णोदक से शरीर को धोते हैं या युवती स्त्री जाति नग्न होकर एकान्त में रतिरभस की बाता करते हैं तो मुनिवर ऐसा जान कर इस प्रकार के उपाश्रय में रहने के लिये क्षेत्रावग्रह रूप द्रव्यावग्रह की एकवार या अनेक बार याचका नहीं करनी चाहिये 'जहा सिजाए आलवगा' यहां पर शय्यैषगा के प्रकरण में जिप्त प्रकार के आलापक बतलाये जा चुके हैं 'नवरं उग्गवत्तव्यया' उसी प्रकार के आलापक यहां पर भी क्षेत्रावग्रह के शिलशिले में समझना चाहिये इसलिये शय्यैषणा पतिनी पुत्रवधू 424 'जाव कम्मकरीओ वा' यावत् गृहपतिनी घाई १२ उपतिना हास है उपतिनी हासी २२ डातिना कर्मकर' ने।४२ अथवा मतिनी भरी न 'अन्नमन्नं उक्कोसंति वा' ५२२५२ मूभी पाई छ २५॥२ ५२२५२ २ान रे छ. अथवा 'तहेव तिल्लादि सिणाणादि' ते विश्थी भावीश २ छे. अथवा स्नान विगेरे ४२ छे. अथवा 'सीओदगवियडादि' अत्यत पाणीथी नहाय छ अर्थात् तेस વિગેરેથી હાથ પગને ઘસે છે. અગર સ્નાન કરવાના ચૂર્ણ આમળા વિગેરેથી શરીરની માલીશ કરે છે. અથવા લેધના પાવડર કે સાબુ વિગેરેથી શરીર સાફ કરે છે. અને અત્યંત ઠંડા પાણીથી અથવા અત્યંત ગરમ પાણીથી શરીરને ધુવે છે. અથવા 'निगिणाइ वा' युवती सी न य न सन्तमा तिशीनी पात ४२ छे. तो माया પ્રકારના ઉપાશ્રયમાં રહેવા માટે ક્ષેત્રાવગ્રહ રૂપ દ્રાવગ્રહની એકવાર કે અનેકવાર યાચના १२वी नली HCी या 'जहा सिज्जाए आलावगा' शय्येषना ५४२९ मा २ प्रमाना माता५। वामां मापी गया छे. 'नवरं उग्गहवत्तजया' मे ५४ाना माता અહીંયા પણ ક્ષેત્રાવગ્રહના પ્રકરણમાં સમજી લેવું.
श्री आया। सूत्र : ४