Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ सू० १ अ. १३ परक्रियानिषेधः
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लोमानि वा 'दोहाई हाई' दीर्घाम् भुवम् - अत्यन्त दीर्घकेशान् 'दीहाई ववखरोमाइ' दीर्घाणि कक्षरोमाणि - अत्यन्त दीर्घ बाहुमूलाधोवर्ति कक्षकेशान् 'दीदार' स्थिरोपाई' दीर्घाणि वस्तिरोमाणि - प्रत्यन्त दीर्घनाभ्यधोगुह्य देशवर्तिलोमानि 'कप्पिज्ज वा संठविज्ज वा ' क्रन्तेत् वा कर्तयेद् वा संस्थापयेद् वा संशोधयेत् तर्हि 'नो तं सायए नो तं नियमे' नो तम् - केशलोमादि कृन्तन्तं गृहस्थम् आस्वादयेत् - मनसा अभिलषेत्र नो वा तम् - कचादिकर्तनं कुर्वन्तं कर्तुमुद्यतं वा गृहस्थं नियमयेत् नियच्छेत् बनला या नोकचादि कर्तनं कर्तुं कथयेत्
उस पूर्वोक्त जैन साधु के शरीर में मस्तक के अत्यंत दीर्घ बडे लंबे केशों को या अत्यंत दीर्घ रोमों को या अत्यंत दीर्घ भौवे के केशों को या 'दीहाई कक्रोमाई' अत्यंत दीर्घ कक्ष अर्थात् काँखों के केशों को याने अत्यंत दीर्घ बाहुमूल के अधो भाग स्थित बगल के केशों को या 'दीहाई वत्थि रोमाई' अत्यंत दीर्घ वस्ति रोमों को याने नाभि के अधो भाग स्थित गुह्य प्रदेश के रोमों को यदि पर अर्थात् गृहस्थ श्रावक वगैरह दूसरा कोई व्यक्ति 'कपिज्ज वा' कर्तन करें अर्थात् काटे या 'संठविज वा' संशोधन करें अर्थात् उक्त अवaa के केशों को काटकर साफ सुथरा करें तो उस को अर्थात् गृहस्थ श्रावक वगैरह किसी भी दूसरे व्यक्ति के द्वारा किये जानेवाले माथा वगैरह के केशों के कर्तन और विशोधन को जैन साधु 'नो तं सायए' आस्वादन नहीं करें क्योंकि इस प्रकार के केशादि कर्तनों की मन से अभिलाषा करने पर परक्रिया विशेष होने से कर्मबन्ध लगेगा इसलिये माधु को इस की अभिलाषा नहीं करनी चाहिये और 'नो तं नियमे' वचन तथा शरीर से भी इस का अनुमोदन या समर्थन नहीं करना चाहिये क्योंकि इस से संयम की विराधना भी होगी इसलिये संयमपालनार्थ जैक मुनि महात्मा गृहस्थ श्रावक को केशादि कर्तन के लिये प्रेरणा नहीं करें ।
子
देशोने अथवा 'दीहाई' कक्खरोमाई' सांगा अम अर्थात् समझना वाणीने अथवा 'दीहाई' वत्थिरोमाइ' सांगा अस्ति शोने अर्थात् शुद्ध प्रदेशनाले पर अर्थात् गृहस्थ श्री विगेरे 'कप्पिज्ज वा संठविज्ज वा' अये है संशोधन अरे अर्थात् गृहस्थ श्राव विगेरे अन्य व्यक्ति उक्त अवयवना पाणी पीने सासू रे तो 'नो तं सायद' तेनुं भेटले કે ગૃહસ્થ શ્રાવક વિગેરેકોઈ અન્ય વ્યક્તિ દ્વારા કરવામાં આવતા મસ્તક વગેરેના કેશેાના કન અને વિશેાધનનુ` સાધુએ આસ્વાદન કરવુ નહી. કેમકે આ પ્રકારના કેશાદિના કાપવાની મનથી અભિલાષા કરવાથી પરિક્રમા વિશેષ હોવાથી કર્માબંધ દોષ લાગે છે તેથી સાધુએ तेनी अभिलाषा उरवी नहीं' तथा 'नो तं नियमे' वयन गर्ने शरीरथी पशु तेनुं मनु
મેદન કે સમન કરવું નહીં'. કેમ કે તેમ કરવાથી સયંત્રની વિરાધના પણ થાય છે. તેથી સયમના પાલન માટે ભાવ સાધુએ ગૃહસ્થ શ્રાવકને શરીરના પૂર્વોક્ત અવયવના
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪