Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारांगसूत्रे सुकुमारत्वाद् भगवान महावीरो बर्द्धमानः 'तीसं वासाई विदेहंसित्तिकटु' त्रिंशद्वर्षाणि विदेह इति कृत्वा गृहावासे निवासं कृत्वेत्यर्थः तदाह-'अगारमझे वसित्ता' अगारमध्ये-गृहमध्ये उषित्वा-निवासं कृता 'अम्मापिऊहिं कालगए हिं' अबापित्रो:-मातापित्रोः, कालगतयोः कालधर्मप्राप्तयोः 'देवलोगमणुपत्तेहिं देवलोकमनुप्राप्तयोः सतोः 'समत्तपइन्ने' समाप्तप्रतिज्ञःजीवन्मातापित्रोः दीक्षाऽग्रहणविषयक प्रतिज्ञायाः परिपूर्णत्वात् सम्प्रति निवृत्तप्रतिज्ञ इत्यर्थः 'चिच्चा हिरण' स्पवत्वा हिरण्यम्-रजतादिधनं त्यक्त्वा परित्यज्येत्यर्थः 'चिच्चा सुवणं' सुवस्वामी गृहस्था वस्था में अत्यन्त सुकुमार होने से विदेह सुकुमार भी कहलाते थे, इस प्रकार के ज्ञातवंशीय सिद्धार्थ के पुत्र विदेह दत्त एवं विदेहार्च तथा विदेह सुकुमार भगवान् बर्द्धमान श्री महावीर स्वामी 'तीसं वासाई विदेहंसित्ति कटु' तीस वर्ष तक विदेह अर्थात् गृहस्थावास में निवास कर याने तीस वर्ष तक अगार. मन्झे वसित्ता' गृहस्थाश्रम में रहकर और अगार मध्य अर्थात् गृह मध्य में निवास करके 'अम्मापिउहिं कालगएहिं' माता पिता को काल धर्म प्राप्त करने पर याने त्रिशला नाम की माता और सिद्धार्थ नाम के पिता मृत्यु रूप काल धर्म प्राप्त कर 'देवलोगमणुपत्तेहिं देवलोक अनुप्राप्त होने पर और 'समत्त पइन्ने' समाप्त प्रतिज्ञ होने पर अर्थात् जीवित माता पिता के याने त्रिशला नाम की माता के और सिद्धार्थ नाम के पिता के पुत्र रूप वर्द्धमान श्री महावीर स्वामी की दीक्षा ग्रहण करने के बारे में प्रतिज्ञा के पूर्ण हो जाने पर एतावता माता पिता के जीवित रहने पर 'मैं दीक्षा नहीं ग्रहण करूंगा' इस प्रकार की श्री महावीर वर्द्धमान स्वामी की प्रतिज्ञा पूर्ण हो जाने पर क्योंकि उनके माता पिता त्रिशला और सिद्धार्थ दोनों ही कालधर्म को प्राप्त कर चुके थे इसलिये भग
ગૃહસ્થાવસ્થામાં અત્યંત સુકુમાર હોવાથી વિદેહસુકુમાર પણ કહેવાય છે. આ પ્રકારના જ્ઞાત વંશીય સિદ્ધાર્થને પુત્ર વિદેહદત્ત અને વિદેહાર્ચ અને વિદેહસુકુમાર ભગવાન વિદ્ધમાન महावीर स्वामी 'तीसं वासाई विदेहंसित्ति कटु' बीस वर्ष पर्यन्त विद्वे स्थापासमा निवास प्रशन मेटले त्रीस वष सुधा गृहस्थाश्रममा डीन 'अगारमझे वसित्ता' मगार मध्य अर्थात् स्यावासमां निवास 3री 'अम्मापिउहि कालगहि' मातापिता ॥ ધમ પ્રાપ્ત કરવાથી અર્થાત ત્રિશલા નામની માતા અને સિદ્ધાર્થ નામના પિતાએ આયુષ્ય ५ पाथी धर्म मास ४२री देवलोगमणुपत्तेहि ४ प्रात ४२वाथी तथा 'समत्त पइन्ने' સમાપ્ત પ્રતિજ્ઞ થવાથી અર્થાત જીવતા માતાપિતાના અર્થાત ત્રિશલા નામની માતાના અને સિદ્ધાર્થ નામના પિતાના પુત્રરૂપ વદ્ધમાન મહાવીર સ્વામીની દીક્ષા ગ્રહણ નહીં કરવા સંબંધી પ્રતિજ્ઞા પૂર્ણ થવાથી એટલે કે માતાપિતાના જીવતા હું દીક્ષા ગ્રહણ કરીશ નહીં, એ પ્રકારની શ્રીમહાવીર વિદ્ધમાન સ્વામીની પ્રતિજ્ઞા પૂર્ણ થઈ જવાથી અર્થાત્ માતા પિતા બને કાળધર્મ પ્રાપ્ત થઈ ગયા હતા તેથી ભગવાન શ્રી મહાવીર સ્વામી નિવૃત્ત પ્રતિજ્ઞાવાળા થઈને
श्री सागसूत्र :४