Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ममें प्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ सू. ८ अ. १५ भावनाध्ययनम्
१०६१ दाम' तपनीय प्रवरलम्बूसक-प्रलम्बमानमुक्तादामां-सुवर्ण मयप्रान्त युक्तप्रलम्बमानमुक्ताफलदामयुक्ताम् 'हारद्धहारभूषणसमोणयं' हाराहारभूषणसमन्विताम्-अष्टादशावलिहार नवावलिरूपा हारप्रभृति नानाभूषणभूषिताम् 'अहियपिच्छणिज्जं' अधिकप्रेक्षणीयाम्-अत्यन्तालोकनोयाम् 'पउमलयभत्तिचित्तं' पद्मलताभक्तित्तित्राम्-पद्मलतावत् चित्रिताम् 'कुंदलयभत्तिचित्तं' कुन्दलता भक्तिचित्राम-कुन्दपुष्पलतावत् चित्रिताम् 'नाणालयभत्तिचित्तं' नानालताभक्तिचित्राम्-नानाप्रकारपुष्पलतावत् चित्रिताम् ‘विर इयं सुभं चारुकतरूवं' विरचिताम्निर्मिताम्-वैक्रियसमुद्घातेन निष्यादिताम् शुभाम्-मङ्गलमयीम् चारुकान्तरूपाम्-रमणीय कमनीयरूपाम् 'नाणामणिपंचवन्नघटापडायपडिमंडियग्गसिहर' नानामणिपञ्चवर्णघण्टापताका प्रतिमण्डिताग्रशिखराम्-अनेकप्रकारक पञ्चवर्णयुक्त इन्द्रनीलमरकत पद्मरागादिमणिभिः पलंयंत मुत्तादामं' वह शिबिका तपनीय प्रवर लम्बसक प्रलम्बमानमुक्तादामा, तपनीय याने सुवर्णमय प्रान्तों (छोडां) से युक्त एवं प्रलम्बमान मुक्ताफल के दामों (डोरी) से भी युक्त थी, तथा 'हारद्ध हारभूसण समोणयं हार याने अठारह लडी वाले हार विशेष एवं नौ लडीवाले अर्धहार वगैरह नाना भूषणों से भी विभूषित थी, एवं 'अहियपिच्छणिज्ज' अधिक प्रेक्षणीया-अत्यंत देखने योग्य तथा 'पउमलय भत्तिचित्तं' पद्मलताभक्तिचित्रा अर्थातू पद्मलत्ता के समान चित्रित एवं 'असोगलयभत्तिचित्तं' अशोक लता के समान चित्रित 'कुंदलयभत्तिचित्तं' कुंदलता के समान भक्तिचित्र अर्थात् अनेक प्रकार के चित्रों से भी चित्रित थी तथा 'नाणालयभत्तिचित्तं' अनेक प्रकार के पुष्पलता के समान चित्रों से सुसजित 'विरइयं सुभं' एवं पूर्वोक्त रीति से वैक्रिय समुदघात क्रिया द्वारा निष्पा दित शुभ-मंगलमयी अत्यंत रमणीय तथा 'चारुकतरुवं' अत्यंत कमनीय रूप वाली 'नानामणि पंचवन्न घंटापडायपडिमंडियग्गसिहर' नाना मणि पञ्चवर्ण ५५ सुशामित मनापी ता. ते सूत्र४।२ नीयन। सूत्र५४था मताव छ.-'तवणीय पवरलंबूस पलवंतमुत्तादाम' ते Air तपनीय श्रेष्ठ सोनाना स तथा समान मातीनी भामाथी ५५५ युक्त ती. तथा 'हारद्धहारभूसणसमोणय' २५ढा२ सेरवाणी २ भने નવસેરવાળો અર્ધહાર વિગેરે પ્રકારના અનેક આભૂષણથી પણ શણગારેલ હતી. તથા 'अहियपिच्छणिज्ज' मध४ प्रथी नेवासाय तथा 'पउमलयभत्तिचित्तं' पनी वेस समान यित्रित तथा 'असोगलयभत्तिचित्तं' मश४ वनक्षता यित्रीथी चित्रे तथा 'कुदलयभत्तिचित्तं' ४ ५८५नी सताना भने प्रा२ना यित्राथी (यती ती. तथा 'नाणालयभत्तिचित्तं' भने ५४२नी यु.५वताना वा चित्राथी यत्रायेस तथा 'विरइय' पूर्वरित ४२नी वैठिय समुधात जियाथी मनावर तथा 'सुभं चारु कंतरूवं' शुम अर्थात् भसरी सत्यत भणीय तथा अत्यंत भनीय ३५१जी 'नानामणिपंचवण्णघंटा पडायपरिमंडियग्गसिहर' भने ५४२ना पायपोथि युति तथा धंद्रनीस भए, भ२४त
श्री मायारागसूत्र :४