Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारांगसूत्रे
क्रिया का प्रतिषेध रूप संयम का अनुष्ठान उस भिक्षुक जैन साधु का और भिक्षुकी जैन साध्वी का सामग्र्य-समग्रता सम्पूर्ण आचार है 'जं सव्य?हिं समिए सहिए' जिस को सम्यग् ज्ञान दर्शन चारित्र से और पांच समितिओं से और तीन गुप्तियों से युक्त होकर 'सया जयिजासि' सदा यतना पूर्वक पालन करना चाहिये और 'सेयमिणं ममिजासि' इस संयमानुष्ठान श्रेय परम कल्याण मानना चाहिये 'त्तिबेमि' ऐसा वीतराग प्रभु महावीर स्वामीने उपदेश दिया है यह मै अर्थात् सुधर्मा स्वामी कहता हूं। 'छट्टो सत्तिको समत्तो' यह छट्ठा सप्तकैकक समाप्त हो गया। और त्रयोदश अध्ययन भी समाप्त हो गया॥१३॥सू. १॥
श्रीजैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री घासीलाल व्रतिविरचित आचारांगसूत्र के दूसरे श्रुतस्कंध की मर्मप्रकाशिकाव्याख्या में
परक्रिया नामका तेरहवां अध्ययन समाप्त ॥१३॥ णीए वा' साजीनु 'सामग्गिय सामअय-समयता अर्थात् सपू माया छे. 'जं सव्वद्वेहिं समिए सहिए' २ सयशान, शन भने यात्रिी तथा पांय समितियो भने १५ गुलियोथी युक्त ने 'सया जएज्जासि' सहा यतनापू पालन ४२. भने 'से यमिण मन्निज्जासित्ति बेमि' २५ सयमानुष्ठानने श्रेय३५ अर्थात् ५२म ४६यारी માનવું. એમ વીતરામ મહાવીર સ્વામીએ ઉપદેશ કરેલ છે. અર્થાત્ હું સુધર્મા સ્વામી કહું छु. 'छदुओ सतिक्कओ समत्तो' ॥ सप्त४४ सभात ॥ सू. २ ॥ શ્રી જૈનાચાર્ય જૈનધર્મદિવાકર પૂજ્યશ્રી ઘાસીલાલ તિવિરચિત આચારાંગસૂત્રની બીજા શ્રુતસ્કંધની મર્મપ્રકાશિકા વ્યાખ્યામાં પરક્રિયા નામનું
તેરમું અધ્યયન સમાપ્ત છે ૧૩ છે
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श्री आया। सूत्र : ४