Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारांगसूत्रे प्रतिषेधं कर्तुमारभते, परन्तु कस्यापि साधोः सेवा शुश्रूषा वैयावृत्यनिमित्तं क्रियमाण क्रियायाः प्रतिषेधो न क्रियते इत्यभिप्रायेण प्ररूपयति-से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' स भिक्षुः-भाव साधुर्वा, भिक्षु की-भावसाध्वी वा 'अन्नमन्नकिरियं' अन्योन्यक्रियाम् -परस्परक्रिया पादादिप्रमार्जनादिरूपाम् 'अज्झत्थियं संसेइयं' आध्यात्मिकीम्-प्रात्मनि क्रियमाणाम् साधोरात्म सम्बन्धिनी क्रियाम्, सांश्लेषिकीम्-कर्मबन्धनकारिणीम् पापकर्मोत्पादिकां क्रियाम् ज्ञात्वा 'नो तं सायए नो तं नियमे' नो ताम्-परस्परपादादि प्रमार्जनादि क्रियाम् आस्वादयेतूमनसा अभिलषेत् , नो वा ताम्-अन्योन्य क्रियमाणपादादि प्रमार्जनादिक्रियाम् नियमयेत्वचसा कर्तुं न कथयेत् , कायेन वा विधातुं न व्यापारयेत् इत्यर्थः ‘से अनमन्नं पाए आमइसलिये स्थविरकल्पिक साधुओं को परस्पर औषधादि क्रियाओं का प्रतिषेध करने के लिये आरम्भ करते हैं, किन्तु किसी भी साधु को सेवाशुश्रूषा वैयावृत्य निमित्तक क्रियमाण क्रिया का प्रतिषेध नहीं किया जाता है इस अभिप्राय से निरूपण करते हैं-'से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा वह पूर्वोक्त स्थविरकल्पिक भिक्षु संयमशील साधु और भिक्षुकी साध्वी 'अन्नमन्नकिरियं अज्झत्थियं' आध्या. त्मिकी अर्थात् साधु के आत्म सम्बन्धी क्रियमाण क्रिया रूप अन्योन्य क्रिया को अर्थात् परस्पर क्रिया को याने परस्पर पादादि प्रमार्जनादि रूप क्रिया को 'संसेश्यं सांश्लेषिकी-कर्मबन्ध कारिणी अर्थात पापकर्मोत्पादिका क्रिया समझकर उस को अर्थात् आत्मा के लिथे क्रियमाण क्रिया रूप अन्योन्य क्रिया को जैन साधु 'नो तं सायए' आस्वादन नहीं करें अर्थात् मन से उस की अभिलाषा नहीं करें और 'नो तं नियमे' वचन से भी उस का अनुमोदन नहीं करें और काय से भी उस का समर्थन नहीं करें अर्थात् अन्योन्य क्रियमाण पादादि प्रमा जनादि क्रिया को करने के लिये मन से इच्छा नहीं करें और वचन से भी प्रेरणा કલ્પિત સાધુઓને પરસ્પર ઔષધાદિ ક્રિયાઓનો નિષેધ કરવા માટે આ અધ્યયનને આરંભ કરવામાં આવેલ છે પરંતુ કોઈ પણ સાધુને સેવાસુશ્રષા વૈયાવૃતિ નિમિત્તે ક્રિયમાણ ક્રિયાને निषेध ४२वाम मा नथी.माथी सूत्र४२ ४ छ. 'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' ते पूरित स्थविर ५ सयमा साधु भने सा 'अन्नमन्नकिरियं अज्झत्थिय माध्यामिडी અથત સાધુના આત્મસંબંધી ક્રિયમાણ ક્રિયારૂપ પરસ્પર કિયાને અર્થાત્ અન્યની या गट ४ ५२५५२ पाहादि प्रभाग नाहि याने। 'संसेइयं' सी मर्यात्
मध ४२नारी मेट ५५४५६ यिन। 'नो तं सायए' मामा भाट કરાતી ક્રિયારૂપ અન્યની ક્રિયાને સાધુ બે આસ્વાદ કરે નહીં'. અર્થાત્ મનથી તેની अमिता। ४२वी नही' तथा 'नों तं नियमे' क्यनथी ५५ तेनु अनुभाहन ४२ नही. તથા કાયથી પણ તેનું સમર્થન કરવું નહીં. અર્થાત્ અન્ય દ્વારા કરાતી પાદાદિના પ્રમાર્જનાદિ ક્રિયા કરવા માટે મનથી ઈચ્છા કરવી નહીં તથા વચનથી પણ પ્રેરણા કરવી
श्री सागसूत्र :४