Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारांगसूत्रे जातीनाम् मध्ये 'सिद्धत्थस्स खत्तियस्स' सिद्धार्थस्य-सिद्धार्थनामकस्य क्षत्रियस्य 'कासव गुत्तस्स' काश्यपगोत्रस्य पन्याः 'तिसलाए खत्तियाणीए' त्रिशलाया:-त्रिशलानाम्न्याः क्षत्रियाण्या:-क्षत्रियजातिस्त्रियाः 'वासिट्ठसगुत्ताए' वासिष्ठगोत्रायाः 'असुभाणं पुग्गलाणं' अशु. भानां पुद्गलानाम्-परमाणूनाम् 'अवहारं करित्ता' भबहारं कृत्वा-गर्भाशयाद् बहिनिस्तारणं विधाय 'सुभाणं पुग्गलाणं' शुभानां पुद्गलानाम् 'पक्खेवं करित्ता' प्रक्षेपं कृत्वा-अशुभपुद्गल. स्थाने शुभपुदगलान संस्थाप्येत्यर्थः 'कुच्छिसि गम्भं साहरइ'कुक्षौ-त्रिशलायाउदरे-गर्भाशये इत्यर्थः गर्भ संहरति-गर्भसंहणं करोति गर्ने प्रवेशयतीति भावः, तथा 'जे वि य से तिसलाए खत्तियाणीए'योऽपि च असौ त्रिशलायाः क्षत्रियाण्याः कुञ्छिसि गम्भे'कुक्षौ-उदरे गर्भ:आसीद 'तंपिय'तमपि च गर्भम् 'दाहिणमाइण हुंडपुरसंनिवेसंसि' दक्षिणब्राह्मणकुण्डपुरसन्निवेशे-दक्षिजाती के मध्य में सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कासवगुत्तस्स' काश्यप गोत्रवाले सिद्धार्थ नाम के क्षत्रिय की पत्नी 'तिसलाए खत्तियाणीए वासिहस्स गुत्ताए' वासिष्ठ गोत्रवाली त्रिशला नाम की क्षत्रिय स्त्री जाति के 'असुभाणं पुग्गलाणं' अशुभ पुद्गलों को अर्थात् अमांगलिक परमाणुओं को 'अवहारं करित्ता' अपहार कर के अर्थात् गर्भाशय से बाहर निकाल कर और 'सुभाणं पुग्गलाणं पक्खेणं करित्ता' उस गर्भाशय में शुभ पुद्गलों को प्रक्षेप कर याने मांगलिक परमाणु रूप पुद्गलों को रखकर 'कुच्छिसि गम्भं साहरइ' त्रिशला के गर्भाशय में प्रवेश कराया अर्थात् शक्र की आज्ञा से देवेन्द्रने देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्भ से निकाल कर भगवान् महावीर स्वामी को त्रिशला के गर्भ में रख दिया और त्रिशला के गर्भ में जो वच्चा उत्पन्न होने वाला था उस को देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्भ में लाकर रख दिया, इसी आशय से कहते हैं कि-'जे विय से तिसलाए खत्तियाणीए कुच्छिसि गम्भे' अर्थात् जो भी बह गर्भ त्रिशला नाम की क्षत्रियाणी के कुक्षि-उदर में था 'तं पिय दाहिणामाहणकुंडपुरसंनिवेसंसि' उस को भी दक्षिण दिग्वर्ती 'सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कासवगुत्तस्स' ४११५५ जना सिद्धार्थ नामना क्षत्रीय नी पत्नी 'तिस लाए खत्तियाणीए वासिट्टस्स गुत्ताए' पासिगोत्रवाणी शिक्षा नाम क्षत्रिय स्त्री तना 'असभाणं पुग्गलाणं' अशुभ मुहान पर्थात् Awinlis ५२मामाने। 'अवहार करित्ता' अ५२ ४शन अर्थात आशियथा ५२ ४९ अने 'सुभाणं पुरगलाणं पक्खेव करित्त' એ ગર્ભાશયમાં શુભ પુદ્ગલેને પ્રક્ષેપ કરીને અથાત્ માંગલિક પરમાણુરૂપ પુદ્ગલેને राभान 'कुच्छिसि गम्भं साहरइ' त्रिशला महा२५ मा प्रवेश ४२२०येमर्थात् श. ન્દ્રની આજ્ઞાથી દેવેન્દ્ર દેવાનંદા બ્રાહ્મણીના ગર્ભમાંથી કહાડીને ભગવાન શ્રી મહાવીર સ્વામીને ત્રિશલાના ગર્ભમાં મૂકી દીધું અને ત્રિશલાના ગર્ભમાં રહેલા બાળકને દેવાનંદા બ્રાહ્મણીના समभावी भूभी दीयो मे साथी ४धु छ -'जे वि य से तिसलाए खत्तियाणीए' २ शिक्षा क्षत्रियालाना 'कुच्छिसि गन्भे' ४२म महतो 'तं पिच' तर ५५५ 'दाहिण
श्री मायारागसूत्र :४