Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारांग सूत्रे
कायेन वा तत्कर्तनं नो कारयेदित्यर्थः, 'से सिया परो तस्य भावसाधोः स्याद - कदाचित् परो - गृहस्थ :- 'सीसाओ लिक्खं वा जूयं वा ' शीर्षतः - मस्तकात् ऋिक्षां वा युकां वा (ढील - लीख ) 'नीहरिज्ज वा विसोहिज्ज वा' निर्हरेद् वा निस्सारयेद् विशेोधयेद् वा संशोधनं वा कुर्यात्, तर्हि 'नो तं सायए नो तं नियमे' नो तम् लिक्षादि निस्सारणं कुर्वन्तम् गृहस्थम् आस्वादयेत् - मनसा 'अभिलषेत् नो वा तम् - लिक्षादिकं निस्सारयन्तं गृहस्थम् नियमयेत् नियच्छेत् वचसा वा लिक्षादिकं निस्सारयितुं न कथये दित्यर्थः कायेन वा तन्निस्सारणं न कारयेदिति भावः ' से सिया परी' तं भावसाधुम् स्यात् कदाचित् परो - गृहस्थ : 'अंकंसि
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अब प्रकारान्तर से भो परक्रिया विशेषका निषेध करते हैं- 'से सिया परो सीसाओ लिक्खं वा' उस पूर्वोक्त जैन साधु के शीर्ष अर्थात् मस्तक से लिक्षों को या 'जूयं वा' यूका को अर्थात् ढील लीख को 'नीहरिज्ज वा विसोहिज्ज वा ' निकाले या निकाल कर विशोधन अर्थात् साफ सुथरा करे तो उस को अर्थात् गृहस्थ श्रावक के द्वारा किये जानेवाले मस्तक से ढील लीखों का विशोधन को जैन साधु 'नो तं सायए' आस्वादन नहीं करें अर्थात् मन से उस की अभिलाषा नहीं करें और 'नो तं नियमे' वचन तथा काय से भी उस का अनुमोदन या समर्थन नहीं करें क्योंकि इस प्रकार के गृहस्थ श्रावक के द्वारा किये जानेवाले साधु के मस्तक से ढील लिखों का निकलवाना या विशोधन करवाना परक्रिया विशेष होने से कर्मबन्धों का कारण माना जाता है इसलिये कर्मबन्धों से छुटकारा पाने के लिये दीक्षा तथा प्रव्रज्या ग्रहण करनेवाले जैन साधु तन मन वचन से इस प्रकार का मस्तक से यूका लिखों को निकलवाने के लिये गृहस्थों को प्रेरणा नहीं करें
अब फिर भी प्रकारान्तर से जैन साधु को गृहस्थ श्रावक अपने गोद में या વાળ કાપવા કે શૈધન કરવા પ્રેરણા કરવી નહીં.
हुवे अारान्तरथी परडिया विशेषना निषेध डे छे. - ' से सिया परो सीसाओ लिक्वा' ते पूर्वोक्त संयभी साधुना भस्तम्भाथी सीमेने अथवा 'जूयं वा' भूने अर्थात् सोते 'नीहरिज्ज वा' महार ' अथवा 'विसोहिज्जवा' भस्तनुं विशोधन रे અર્થાત્ સાફસૂફ કરે તે ગૃહસ્થ શ્રાવક દ્વારા કરવામાં આવતા માથામાંથી જૂ કે લીખાના विशोधनने 'नो त' सायए' साधुये आवाहन ४२वु नहीं अर्थात् भनधीतेनी अभिद्याषा १२वी नहीं' तथा 'तो त' नियमे' वन्यनथी भने शरीरमी पशु तेनु अनुमोदन के समर्थन કપુ નડી. કેમ કે આ પ્રકારના ગૃહસ્થ શ્રાવક દ્વારા કરવામાં આવતા સાધુના માથામાની જૂ કે લીખાનુ કહ।ડવાનું કે સાફસુફ કરાવવાને પરક્રિયા વિશેષ હેાવાથી કમ`બ ધનુ' માનવામાં આવે છે, તેથી કબ ધનથી છૂટકો મેળવવા દીક્ષા ધારણ કરવાવાળા સાધુએ તન મન અને વચનથી આ રીતે માથામાની જૂ કે લીખા કઢાવવા માટે ગૃહસ્થને પ્રેરણા કરવી નહીં.
કારણ
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪