Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारॉगसूत्रे गृहस्थः अङ्के वा पर्यके वा 'तुयट्टावित्ता' स्वापयित्वा स्थापयित्वा वा 'हारं वा अद्धहारं वा हारं वा-अष्टादशशङ्खलाकहारविशेषम्, अर्द्धहारं वा-नवशङ्खलाकहार विशेष वा 'उरत्थं वा गेवेयं वा' उरस्थं वा-वक्षस्थलस्थितम् ,ग्रैवेयकं वा-ग्रीवालङ्कारभूतम् 'म उडं वा पालंबं वा' मुकुटं वा-शिरोमौलिभूषणभूतम् , पालम्ब वा-कर्णावतंसरूपं वा 'सुवन्नसुत्तं वा' सुवर्णसूत्रं वा-सुवर्णसूत्ररूपम् भूषणम् 'आविहिज वा पिणहिज्ज वा' आवध्नीयाद् वा, पिनह्येद् वा पिनद्धं वा कुर्यात् परिधापये दित्यर्थः तर्हि 'नो तं सायए नो तं नियमे' नो तम् हारादिकम्
आवध्नन्तं पिनह्यन्तं वा गृहस्थम् अस्वादयेत्-मनसा अभिलषेत्, नो वा तम्--हारादिभूषणं बध्नन्तं पिनह्यन्तं वा गृहस्थं नियमयेत्-नियच्छेत् , मनसा वचसा वपुषा वा कायिकहस्तादि पहनावे तो उस को भी परक्रिया विशेष होने से निषेध करते हैं-'से सियापरो अंकंसि वा, पलियंकंसि वा' उस पूर्वोक्त जैन साधु को यदि कदाचित् पर अर्थात् गहस्थ श्रावक अङ्क अर्थात् गोद में या पर्यङ्क चार पाई पर 'तुयट्ठावित्ता' स्सुलाकर या संस्थापित कर उस साधु के गले में 'हारं वा' हार का अर्थात् अठा रह शृङ्खला (लड़ी) वाले हार विशेष को या 'अद्धहारं वा' अर्धहार को अर्थात् नौ शङ्खला (लड़ी) वाले हार को या 'उरत्थं वा' उरस्थ अर्थात् बक्षस्थल (छाती) में लटकने वाले 'गेवेयं वा' त्रैवेयक अर्थात् ग्रीवालंकार विशेष को या 'मउडं वा' मुकुट को अर्थात् मस्तक के भूषण भूत मौलि मुकुट को या 'पालंय वा' प्रालम्ब को अर्थात् कर्णावतंसभूत कर्णभूषण विशेष को या 'सुवण्ण सुत्तं वा' सुवर्ण सूत्र रूप भूषण विशेष को 'आविहिज वा पिणहिज वा' पहनावे या बांधे तो उस को अर्थात् गृहस्थ श्रावक के द्वारा साधु के गला वगैरह में पहनाये जानेवाले हारादिका जैन साधु 'नो तं सायए' आस्वादन नहीं करें अर्थात् मन में उस की अभिलाषा नहीं करें और 'नो तं नियमे वचन शरीर से भी उस का अनुमोदन या सम
હવે સાધુના ગળામાં ગૃહસ્થ શ્રાવકે હાર વિગેરે પહેરાવવાનું સૂત્રકાર નિષેધ કરે છે___ से सिया परो अंकसि वा' से पूर्वात सयभी साधुन ४४५२ अर्थात् गृहस्थ श्रा१४ मोकामा मया 'पलियंकसि वा' ५६ ५२ 'तुयट्टावित्ता' सुवरावी । मेसारीन. 'हारं वा' साधुना मामा ७२ अटले मढा२ २२वाय २२ ५। 'अद्ध हारं वा' अडारने अर्थात् नपसेरवा॥ २२ अथवा 'उरत्थं वा' ६२२५ मर्थात् पक्षस्य (छाती) ५२ टना२३ गजानु माभूषणने अथवा 'गेवेयं वा' मा ५२वाना माभूषने मथवा 'मउडवा' भुटने अर्थात् मायाना भूष३३५ माभूषणने भय। 'पालंबं वा' प्रास' अर्यात् हानना माभूषाने अथवा ते 'सुवण्णसुत्त वा' सुवर्षसूत्र-सोनान। हो। 'अविहिज्ज वा, पिणिहिज्ज वा' परावे है भाधे तो ते ते ७२५ श्राप दा। साधुन गा विगेरेभा पवामा भावना। शहनु 'नो त सायए' साधुसे मारवाहन ४२ नली. अर्थात् मनमा तनी अमिताप ४२१] नही. तथा 'नो तं नियमे' १यन
श्री मायारागसूत्र :४