Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. २ सु. ६ सप्तम अवग्रहप्रतिमाध्ययननिरूपणम् ८१३ प्रतिगृह्णीयात् से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'से जं पुण अंब जाणिज्जा' स-साधुः यत् पुनः आम्रम् आम्रफलं जानीयात् 'अपंडं जाव अप्प संताणगं' अल्पाण्डम् - अण्डरहितम् यावत्- अल्पसन्तानकम् प्राणिरहितम् बीजरहितम् अहरितम् अनुक्रम् उत्तिङ्ग पनकदकपृतिकालूतान्तुजालरहितम् 'अतिरिच्छ छिन्नं' अतिरथीनच्छिन्नम् न तिर्यक्कू छिन्नं 'अन्यो
पालन करना ही जैन साधु मुनि महात्माओं का परम कर्तव्य समझा जाता है। इसलिये लालच से अण्डादि युक्त आम्र को ग्रहण करना साधु और साध्वी के लिये उचित नहीं है यही तात्पर्य समझना चाहिये ॥
फिर भी प्रकारान्तर से आम्रफल को ग्रहण करने को साधु और साध्वी के लिये मना करते हैं।
'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा, से जं पुण अं जाणिज्जा' - वह पूर्वोक्त भिक्षु संयमशील साधु और भिक्षुकी - साध्वी यदि ऐसा वक्ष्यमाण रूप से आम्र को जान ले कि 'पंजाव अपसंताणगं' यह आम्रफल अल्पाण्ड है अर्थात् थोडे ही अण्डों से युक्त है लेशमात्र हो अण्ड युक्त होने से अण्ड रहिन जैसा प्रतीत होता है एवं यावत् - अल्पप्राणि युक्त है अर्थात् लेशमात्र ही प्राणी से युक्त होने से प्राणी रहित हो प्रतीत होता है, एवं बीज रहित है तथा हरित युक्त भी नहीं है एवं शीतोदक के सम्पर्क से भी रहित है एवं उत्तिङ्ग पनक जलमिश्रित मृत्तिका तथा लूता तन्तु जाल परम्परा से भी रहित है किन्तु यह आम्रफल
રીતે પાલન કરવું એજ સયમશીલ મુની મહારાજેનું પરમ કર્તવ્ય મનાય છે. તેથી લેાભ લાલચથી અડાદિ વાળી કેરીને ગ્રહણ કરવી તે સાધુ અને સાધ્વીને માટે ઉચિત નથી. એજ આ કથન નું તાત્પ છે.
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પ્રકારાન્તરથી કેરીને સાધુ અને સાધ્વીને ગ્રહણુ ન કરવા માટેનુ કથન કરે છે. 'से fara ar rant वा' ते पूर्वोस्त संयमशील साधु भने साध्वी 'से जं पुण अंध जाणिज्जा' ले रक्ष्यमाणु रीते पुराने भो - मा डेरी 'अपंडे जाव अप्प संताणगं' मांड અર્થાત્ થે।ડા જ ઇંડાવાળી છે. લેશમાત્ર જ ઇંડાવાળી હાવાથી ઈંડા વગરના જેવી જાય છે. એવ' યાવત અલ્પ પ્રાણી યુક્ત છે. અર્થાત્ લેશમાત્ર જ પ્રાણીવાળી હવાથી પ્રાણી વિનાની જ જણાય છે. તથા ખીન્ન રહિત જ છે. તથા લીલેાતરી વાળી પણ નથી. તય ઠંડા પણીના સંપર્ક વિનાની છે. તથા ઉત્તુંગ પનક જલમિશ્રિત માટિ તથા ભૂતા તંતુ. परंपराथी पशु रहित छे. परंतु या मेरी 'अतिरिच्छछिन्नं' तिर्यग्छिन्न नथी. अर्थात् वांडी इरीने या विदेशी अपेक्षा नथी, तथा 'अवोच्छिन्नं' व्यवछिन्न अर्थात् अखंड ४ छे. कुडा हरीने यस पशु नथी से रीते हो तो तेवी डेरीने 'अल्फा सुर्य
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪