Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मर्मप्रकाशिका टोका श्रुतस्कंध २ उ. १ सू० ६ सप्तम अवग्रहप्रतिमाध्ययननिरूपणम् ८२१ खिज्जा' अमिकाक्षेत्-यदि वाञ्छेत् 'अंतरुच्छुयं वा उच्छुगंडियं वा' अन्तरिक्षुकं वा-इनुपर्वमध्यभागम्, इक्षुगण्डिका वा-इक्षुपर्वखण्डम् 'उच्छुचोयगं वा' इक्षुत्वचं वा 'उच्छुसालगं वा' इक्षुसालकं वा-इक्षसारभूतरसम् 'उच्छुडालगंवा' इक्षुडालकं वा इक्षखण्डं 'भुत्तए वा पायए वा' भोक्तुं वा पातुं वा यदि परिस्थितिवशाद् इच्छेत्तहि ‘से जं पुण जाणिज्जा' स साधुः यत् पुनः जानीयात् 'अंतरुच्छुपं वा' अन्तरिक्षकं वा-इक्षुपर्वमध्य भागम् 'जाव डालगं वा' यावत्इक्षुगण्डिकां वा इक्षु वचं वा इक्षुसालकं वा इक्षुडालकं वा-इक्षुखण्डं 'सअंडं जाव नो पडि. गाहिज्जा' साण्डम्-अण्डसहितम्, यावत्-सत्राणं सबीजं सहरितम् सोदकं सोत्तिङ्गपनकदकमृत्तिकालूतातन्नुजालसहितम् जानीयादिति पूर्वेणान्वयः तर्हि तथाप्रकारम् अन्तरिक्षुकम् इक्षु. भिक्खुणी वा,'-वह पूर्वोक्त भिक्षु-संयमशील साधु और भिक्षुकी-साध्वी यदि 'अभिकंखिजा अंतरुच्छुयं वा' इक्षुदण्ड के पोर का मध्य भाग को खाने की इच्छा करे या 'उच्छुगंडियं वा' इक्षुदण्ड-गन्ना का पोर को खाने की इच्छा करे या 'उच्छुचोयगं वा' इक्षुदण्ड-गन्ना के सारभूत रस को पीने की इच्छा करे या 'उच्छुडालगं वा' इक्षुदण्ड-गन्ना के डाल को 'भुत्तए वा पाथए वा' खाने की या पीनेकी इच्छा करे और ‘से जं पुण जाणिज्जा' वह साधु या साध्वी यदि ऐसा वक्ष्यमाणरूप से जान ले कि 'अंतरुच्छुयं वा जाव डालगं वा' इक्षुदण्ड-गन्ना का पर्व मध्य भाग या यावत्-इक्षुपर्व खण्ड-अर्थात गन्ना का पोर या गन्ना का छिलका या गन्ना का सारभूत रस या गन्ना का डाल अर्थात् खण्ड यदि 'सअंडं जाव नो पडिगाहिज्जा' अण्डों से संयुक्त है या अङ्कुर जनक बीजों से युक्त है या हरे भरे तृणघास वगैरह वनस्पतिकाय जीवों से सम्बद्ध है, शीतोदक से सम्बद्ध है अथवा उत्तिन छोटे छोटे कीडे मकोडे प्राणियों से युक्त है या पनक-फनगे चीटी पिपडी वगैरह जीवों से भी सम्बद्ध है, एवं शीतादक मिश्रित गिली मिट्टी से भी सम्बद्ध
હવે પ્રકારાન્તરથી પણ સેલડીના સાંઠાને ખાવાને નિષેધ બતાવવામાં આવે છે.'से भिक्ख वा भिक्खुणी वा' ते पूरित संयमशील साधु सने साथी 'अभिकंखिज्जा अंतहच्छुय वा उच्छुगंडियं वा' सेबीना सisni ranाना मध्यमाने पापानी ४२७॥ ४२ भय सेमीनी तजार भावानी ५२७१ ४रे 'उच्छुचोयगं वा उच्छुसालगं वा' सेडान छालने सेखडीना २सने पीवानी (२छ४२ अथवा 'इच्छुडालगं वा' सेaडीन
मन 'भुत्तए वा पायए वा' मावानी , पीपानी २७। ४२ मन से जं पुण जाणिज्जा' ते साधु भार साध्वी ने 20 १६५मा रीते तो 3- 'अंतरुच्छुयं वा' मा सेaडाना Aist भयमा 'जाव डालगं वा' यावत् सेasia तणी सेबीना छ।। सेट. जीना २स है सेबीन। ४४'सअंडं' माथी युत छ. मया भोपा६४ माथा યુક્ત છે. તથા લીલા ઘાસ વિગેરે વનસ્પતિકાય જેથી સંબંધિત છે. અથવા ઠંડા પાણીના સંબંધવાળી છે. તથા કાળીયાના જાળ પરંપરાથી પણ સંબંધિત છે. એવું
श्री. आयासूत्र : ४