Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारांगसूत्रे गृह्णीयादिति भावः ‘से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'अभिकखेज्जा निसीहियं गमणार' अभिकाङ्क्षेत्-निषीधिकाम्-स्वाध्यायभूमि गन्तुम् तर्हि ‘से पुण निसी हियं स पुनः साधुः निषीधिकाम्-स्वाध्यायभूमिम् 'अप्पंडं अपपाणं अपनीय' अल्पाण्डाम्अण्डरहिताम् अल्पप्राणाम्-प्राणिरहिताम्, अल्पबीजाम्-बीजरहितां 'जाव संताणयं' यावद्अनुदकाम् उत्तिङ्गपनकपृतिकालूतातन्तुजालसन्तानरहितां यदि पश्येत् तर्हि 'तहप्पगारं की विराधना होगी इसलिये संयम पालनार्थ साधु और साध्वी को इस प्रकार के स्थान में नहीं जाना चाहिये इसलिये साधु और साध्वी प्रतिज्ञा करे कि इस प्रकार की सजीवि स्वाध्याय भूमि में मिलने पर भी में नहीं जाउंगा या ग्रहण करूंगा,-ऐसी प्रतिज्ञा कर वहाँ नहीं जाय,
अब निग्रंथों को किस प्रकार की भूमि में स्वाध्याय करने के लिये गमन करे यह बतलाते हैं-'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा, अभिकंखिज्जा-निसीहियं गमणाए' वह पूर्वोक्त भिक्षु संयमशील साधु और भिक्षुकी साध्वी यदि निषोधिका में अर्थात् उपाश्रय से बाहर स्वाध्याय भूमि में स्वाध्याय करने के लिये जाने की इच्छा करे और यदि 'से जं पुण निसीहियं जाणिज्जा' वह साधु और साध्वी यदि ऐसा वक्ष्यमाण रूप से निषीधिका स्वाध्याय भूमिको जानले कि-'अप्पंड अप्पबीयं जाव संताणयं' यह निषीधिका स्वाध्याय भूमि अल्पाण्ड है अर्थात् अण्डों से रहित है अर्थात् अल्प शब्द ईषदर्थक होने से ईषत् लेश मात्र ही अण्डे हैं अर्थात् अण्डों का अस्तित्वलेश मात्र ही है इसलिये नहीं जैसा ही अण्डे हैं इस तरह छोटे छोटे एकेन्द्रिय आदि प्राणियों से भी रहित है एवं सचित्त बीजों से भी रहित है तथा हरे भरे तण घास वगैरह वनस्पतिकाय जीव से भी મના રક્ષણ માટે સાધુ અને સાધ્વીએ આવા પ્રકારના સ્થાનમાં જવું નહીં. સાધુ અને સાધ્વીએ પ્રતિજ્ઞા કરવી કે આવા પ્રકારની સજીવ સ્વાધ્યાય ભૂમિ પ્રાપ્ત થવા છતાં પણ હું ત્યાં જઈશ નહીં. ગ્રહણ કરીશ નહીં. આ રીતની પ્રતિજ્ઞા કરીને ત્યાં જવું નહીં.
॥ प्रारनी भूमिमा स्वाध्याय ४२१॥ ते सूत्र२ मताव छ,-'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' ते पूरित सयमशील साधु अन साकी 'अभिकखिज्जा निसीहियं गमणाए' ले निषाविमा अर्थात् ॥श्रयानी महार स्वाध्यायभूमिमां स्वाध्याय ४२१॥ भाटपानी ४२छ। ४३ ‘से जं पुण निसीहियं जाणिज्जा' भने ते साधु साकी આ વક્ષ્યમાણ રીતે એ નિષાધિકા એટલે કે સ્વાધ્યાય ભૂમિને જાણે કે-આ નિષાધિકા 'अप्पड' २०६५is अर्थात् मे विनानी छ. ही या ५६५ ना ४५ पाथी षत લેશમાત્ર નહીંવત ઈડ છે, અર્થાત્ ઈંડાનું અસ્તિત્વ લેશમાત્ર જ છે. તેથી તે નહીંવત્ છે. तवी रीते 'अप्पपाणं' नाना नाना मेन्द्रिय विगेरे प्राणिय। ५ नथी तथा 'अपबीय' मीया विनानी छ, 'जाव संत्ताणय' तयmalan me घास विशेरे ३५तिय थी
श्री सागसूत्र :४