Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
८८४
आचारांगसूत्रे 'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' स संयमवान् भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा' स-संयमवान् भिक्षुः यत् पुनः स्थण्डिलं जानीयात् 'इंगालदाहेसु वा' अङ्गारदाहेषु वाअङ्गारदाहस्थानादौ 'खारदाहेसु वा' क्षारदाहेषु वा-क्षारदाहस्थानेषु 'मडयदाहेसु वा' मृतक दाहेषु वा-श्मशानभूमिषु 'मडयथूभियासु' मृतकस्तूपेषु वा-मृतकस्थापितमृत्तिकाचयेषु 'मडयचेइएसु वा' मृतकचैत्येषु वा-मृतकचैत्यरूपगृहेषु 'अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि' कल्याण करने वाले या कल्याण चाहने वाले साधु और साध्वी को इस प्रकार के सार्वजनिक चौराहा वगैरह के रास्ता से सम्बद्ध स्थण्डिलभूमी में मलमूत्र का त्याग नहीं करना चाहिये क्योंकि संयम और आत्मा को पालन करना ही साधु और साध्वी का परम कर्तव्य समझा जाता है। ___ अब फिर भी प्रकारान्तर से स्थविरकल्पि साधु और साध्वी को श्मशान भूमि से सम्बद्ध स्थण्डिलभूमी में मलमूत्र का त्याग करना नहीं उचित है यह बतलाते हैं 'से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा, से जं पुण थंडिलं जाणिज्जा'-वह पूर्वोक्त भिक्षु संयमशील मुनिमहात्मा और भिक्षुकी-साध्वी यदि ऐसा वक्ष्यमाण रूप से स्थण्डिलभूमी को जान ले कि 'इंगालदाहेसु वा' इस स्थण्डिलभूमी के पास अगारदाह अर्थात् आग की ज्वाला का स्थान है या 'खारदाहेसु वा क्षार-दाह अर्थात् राखदाह स्थान है याने आग को जलाकर शान्त करके राख का ढेर करने का स्थान है या 'माडयदाहेसु वा' यहाँ पर मृतक मुर्दा को जलाने का स्थान है अर्थात् श्मशान भूमि है या यहां पर 'मडयथुभियासु वा मृतक मुर्दे को जमीन के अंदर खोदकर रखने याने गाढ देने का स्तूप-कबर का स्थान है या 'मडयचेइएसु મુનિના પ્રવચન પ્રતિ આદર થાય નહીં. તેથી આ પ્રકારના રસ્તાઓથી સંબંધવાળી સ્થડિલભૂમીમાં મલમૂત્રને ત્યાગ કરવાથી સંયમ અને આત્માની વિરાધના થાય છે. તેથી સંયમનું પાલન કરવા વાળા અને આત્માનું કલ્યાણ ચાહનારા સાધુ કે સાર્વીએ આ રીતના સાર્વજનિક ચતુપથ વિગેરે રસ્તાના સંબંધવાળી થંડિલભૂમીમાં મળમૂત્રને ત્યાગ કરે નહીં. કેમકે-સંયમ અને આત્માનું પાલન કરવું એજ સાધુ સાધ્વીનું પરમ કર્તવ્ય સમજવામાં આવે છે.
હવે સાધુ અને સાધ્વીને રમશાલ ભૂમી વિગેરેના સંબંધ વાળી થડિલભૂમીમાં भसमूत्रना या ४२३॥ ते मनुथित डा विषे ४थन ४२ छे.-'से भिक्ख वा भिक्खुणी वा'
alsत सयभार साधु भने सावी ‘से जे पुण थंडिलं जाणिज्जा' ने ये शतना २५ Saभी ये -मा स्थ समूभीनी पासे 'इंगालदाहेसु वा' हा अर्थात् मागनी नवास पाणु स्थान छे. मथ'खारदाहेसु वा' क्षार अर्थात् AGन जाय। पछी रामना । ४२वानु थान छ. Aथवा 'मडयदाहेसु वा' म मावानु स्थान छ. मेट है श्मशान भूमी छे. अथवा 'मडयथूभियासु वा' महान भीननी ४२ होटवानु स्थान छ. म24 'मडयचेइएसु वा भूतनु चैत्य छे. अर्थात महान भारि विगेरेमा रामान
श्री आया। सूत्र : ४