Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारांगसूत्रे संयमवान् साधुः तत्-पात्रं स्वकीयं परकीयं वा आदाय 'एगंतमवक्कमे एकान्ते-निर्जनस्थाने अपक्रामेत्-निगच्छेत्-कीदृशमेकान्तस्थानमित्याह-'अणावायंसि असंलोयंसि' अनापातेजनसंपातरहिते-यातायातरहिते इत्यर्थः, एवम्-असंलोके- लोकदर्शनायोग्ये 'अप्पपाणंसि' अल्पप्राणे-एकेन्द्रियद्वीन्द्रियादिजीव रहिते 'जाव मकडासंताणयंसि' बीजरहिने हरितशून्ये अनुदके उत्तिङ्गपनकदकमृत्तिका मर्कटासंतानरहिते लूतातन्तु जालरहिते इत्यर्थः 'अहारामंसि वा उवस्तयंति' यथारामे वा उद्यानगर्तादौ वा, उपाश्रये वा एकान्तस्थाने निर्गत्य इत्यर्थः 'तो संजयामेव' ततः संयतमेव-यतनापूर्वकमेव 'उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा' उच्चारप्रसवणम्-मलमूत्रत्यागं व्युत्सृजेत्-कुर्यात्, 'से तमायाए एगंतमबक्कमे' स-संयमवान् साधुः तद्मलमूत्रसहित पात्रम् आदाय-गृहीत्वा एकान्ते निर्जन प्रदेशे अपक्रामेत्-निर्गच्छेत्, कीदृशं निर्जनस्थानमित्याह-'अणाबाहंसि जाव संताणयंसि' अनाबाधे-जीवबाधा रहिते यावत्अण्डरहिते प्राणिरहिते बीजरहिते अहरिते उत्तिङ्गपनकदकमृत्तिकालूतातन्तुजालसन्तानजन सपात रहित याने मनुष्यों के यातायात रहित, एकान्त स्थान में एवं लोगों के नहीं देखे जानेवाले एकान्त स्थान में 'अप्पपाणंसि वा जाव' एकेन्द्रिय द्वीन्द्रियादि जीवों से रहित उस एकान्त स्थान में एवं यावत्-बीजों से रहित हरितों से रहित शीतोदक से रहित उत्तिङ्गपनक उदकमिश्रितमिट्टी तथा 'मक्कडासंताणयंसि वा मकडे का जाल परम्पराओं से रहित उस एकान्त स्थान में 'अहारामंसि वा' यथाराम-उधान वगैरह के खड़े में या 'उवस्सयंसि वा' उपाश्रय के एकान्त स्थान में जाकर 'तओ संजयामेव उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा' संयम पूर्वक ही मलमूत्र का त्याग करे और वह संयमशील साधु और साध्वी 'से तमायाए एगंतमबक्कमेज्जा' उस मलमूत्र सहित के पात्र को लेकर एकान्त में चला जाय और 'अणावाहंसि जाव संताणयंसि' उस जीव बाधा रहित एवं यावत्-अण्डों से रहित एवं प्राणियों से रहित तथा बीजों से रहित एवं हरितों से रहित एवं शीतोपाणंसि जाव' तथा मेन्द्रिय वीन्द्रिय, विगैरे व विनाना मे हन्त स्थानमा मेव યાવત્ બીજે રહિત લીલોતરીથી રહિત શીતેદક રહિત ઉસિંગ પનક, ઉદકમિશ્રિત માટિ तथा 'मक्कडासंताणयंसि' ४ोणीयानी on ५२५राम। बिनाना मे मेहन्त स्थानमा 'अहारामंसि' यथाराम अर्थात् धान विगेरे ना मामा अथवा 'उवस्सयसि व पाश्रयना मेहन्त स्थानमा ४२ 'तओ संजयामेव' संयमपूर्व 'उच्चारपासवणं वोसिरिज्जा' भरभूत्रने या ४२३. 'से तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा' ते पछी त साधु, सापीये से भवभूत्र सतिन पात्र धन सन्तमा निर्गन स्थानमा याच्या पु. 'अणावाहंसि जाव संताणयंसि' मने ये न माया विनाना तथा यावत् विनाना तथा प्राणियो વિનાના તથા બીયાઓ વિનાના અને લીલેરી વિનાના તથા શીતેદક વિનાના અને ઉસિંગ પનક જલમિશ્રિત માટી તથા સૂતા તતુ કળીયાની જાળ પરંપરા વિના નાએ
श्री सागसूत्र :४