Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ.१ स. ३ अ. १० उच्चारप्रस्रवणविधेनिरूपणम् ८९५ वाद्यविशेषशब्दान् ‘पणयसदाणि या' पण शब्दान् वा 'तुंबवीणियसदाणि वा' तुम्बीवीणिका शब्दान् वा 'ढंकुण सहाई वा' ढकाशब्दान् वा 'अन्नयराइं वा तहप्पगाराई' अन्यतरान् वातदन्यान् वा तथाप्रकारान्-वीणाप्रभृतितन्त्री वाद्यविशेषशब्दान् 'विरूवरूवाई सदाई तताई' विरूपरूपान्-नानाविधान् शब्दान ततान-ततशब्देन प्रसिद्धान् कण्णसोयणपडियाए' कणेश्रवणप्रतिज्ञया कर्णश्रवणेच्छया 'नो अभिसंधारिजा गमणाए' नो अभिसंधारयेद मनसि विचारयेत् गमनाय-गन्तुं संकल्पं न कुर्यादित्यर्थः, सम्प्रति घनशब्दान श्रोतुं निषेधति-'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'अहावेगइयाई सदाइं सुणेइ' यथा वा रसनचौकी नाम के आतोद्यविशेष के शब्दो के या 'तृणयसद्दाणि वा पणयसहाणि वा' तूणक तन्त्रो वाद्यविशेष के शब्दों को या पणक-पटहनामक आतोद्य विशेष के शब्दों की या 'तुंबवीणियसद्दाणि बा' तुम्बीवोणिका आतोद्यविशेष के शब्दों को या 'ढंकुणसद्दाई वा' ढकानाम के आतोद्यविशेष के शब्दों को या 'अन्नयराई वा तहप्पगाराई' इमी तरह के दूसरे भी किसी भी आतोद्यविशेष के शब्दों को अर्थात् वीणा वगैरह तन्त्री वाद्यविशेष के शब्दों याने 'विरूवरूवाई सद्दाई तताई नानाप्रकार के ततशब्द से प्रसिद्ध शब्दों को 'कण्णसोयण पडियाए' कान से सुनने की इच्छा से कहीं भी दूसरे स्थान में 'नो अभिसंधारिजा गमणाए' गमन करने को इच्छा या मन में विचार नहीं करे क्योंकि इस प्रकार के आतोद्य शब्दों को सुनने की आसक्ति होने से संयम की विराधना होगी, इसलिये संथमपालन करनेवाले साधु को इस प्रकार के शब्दों को सुनने की इच्छा भी नहीं करनी चाहिये।।
अब संयमशील साधु और साध्वी को घनशब्दों को भी नहीं सुनना चाहिये यह बतलाते हैं- "से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा, अहावेगइयाई मद्दाई ती पाविशेषन 4441 'पणयसदाणि वा' ५८ नामना माते विशेषना शहान 424n 'तुंबविणीयसदाणि वा' तु मातविशेषना शहोने ढंकुणसद्दाई वा' d! नामना माताध विशेषना २ मा 'अन्नयराई वा तहप्पगाराई' मा ४२ना भीan |५५ 'विरूवरूवाई सदाइं तताई' आता विशेषना शहाने अर्थात् पी विशेष तीवाय विशेषना होने पर्थात् मने ना तत थी प्रसिद्ध होने 'कण्णसोयणपडियोए' नया airmanी ४२७थी |५] मी स्थानमा 'नो अभिसंधारिज्जा गमणाए' आभन ४२वानी २छ। मनमा विया२ ४२॥ नहीं भ3-14। प्रारना આદ્ય શબ્દોને સાંભળવાની આસક્તિ રાખવાથી સંયમની વિરાધના થાય છે. તેથી સંયમનું પાલન કરવાવાળા સાધુએ આવા પ્રકારના શબ્દોને સાંભળવાની ઈચ્છા પણ કરવી નહીં.
- હવે સાધુ અને સાધ્વીએ ઘન શબ્દને સાંભળવાનું સૂત્રકાર નિષેધ બતાવે છે.-બરે भिक्खू वा भिक्खुणी वा' ते पूर्वात सयमा साधु भने साना 'अहावेइयाई सदाई सुणेई' ले १६५मा ४२ मे 22 Awहीन सामने 'तं जहा' रेमो 'नंदीसहाणि वा'
श्री सागसूत्र :४