Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारांगसूत्रे
प्ररूप्यते - ' से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'अहासंथडमेव उग्गह जाइज्जा' यथासंस्तारकमेव संस्तारकानतिक्रमेणैव यथाप्राप्त संस्तार का नुकूलमेव अवग्रहं याचेत 'तं जहा - पुढविसिलं वा तद्यथा - पृथिवीशिलां वा - पृथिव्युपरिस्थापितप्रस्तरो वा स्यात् 'कडसिलं वा' काष्ठशिलां वा-दारुशिलां वा स्यात् 'अहासंथडमेव' यथासंस्तृतमेवआस्तृतानुसारेणैव अवग्रहं याचेत 'तस्स लाभे संते संत्रसिज्जा' तस्य यथासंस्तृतस्य तृणादेभे सति संवसेत् 'तरस अलाभे उवकुडुओ वा तस्य यथासंस्तृतस्य घासादेरलाभे तु उत्कुटुको वा कुक्कुटासनो भूत्वा 'नेसज्जिज्जो वा विहरिज्जा' निषण्णो वा उपविष्टः सन् विहरेत् - तिष्ठेत् 'सत्तमा पडिमा ' इति सप्तमी प्रतिमा - अभिग्रहरूपा प्रतिज्ञा बोध्या, ताः पडिमा से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा' अब सातवीं प्रतिमा रूप प्रतिज्ञा का स्वरूप यह है - वह पूर्वोक्त भिक्षु संयमशील साधु और भिक्षुकी साध्वी 'अहासंथडमेव उग्गहं जाइज्जा' यथाप्राप्त संस्तारक के अनुसार ही अर्थात् पूर्व काल से स्थापित संधरा के मुताबिक हि रहने के लिये अवग्रह स्थान की याचना करे 'तं जहा - पुढविसिलं वा' जैसे कि पृथिवीशिला हो अर्थात् पृथिवी के ऊपर स्थापित पत्थर हो या 'कट्ठसिलं वा' काष्टशिला हो अर्थात् दारु लकडी का बनाया हुआ पीठासन हो या फलक हो या 'अहासंथडमेव' पाट हो पहले से वहां पर रक्खा हुआ हो उसके अनुसार ही स्थान की याचना करनी चाहिये, और 'तस्स 'लाभे संते संबसिजा' यथासंस्तृत अर्थात् पहले से बिछाये हुए तृण पलाल पुआरा घासविशेष वगैरह के मिलने पर निवास करना चाहिये और 'तस्स अलाभे उक्कुडुओ वा' उस घास वगैरह बिछाने के नहीं मिलने पर कुक्कुटासन होकर या 'नेस जिजो वा विहरिजा' बैठ कर ही रहना चाहिये यह 'सत्तमा पडिमा सातवीं प्रतिज्ञा रूप पडिमा समझलेनी चाहिये, अब उपर्युक्त सातों प्रतिमाओं का 'सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा' ते पूर्वोस्त संयमशील साधु भने साध्वी 'अहासंघडमेव उग्गह जाइज्जा' यथाप्राप्त संस्तार प्रमाणे अर्थात् पडेदेशी राजेश संथारा प्रमाणे रवा भाटे व स्थाननी याथना रवी 'तं जहा' ते या प्रभाये 'पुढवीसिलं वा' पृथिवी शिक्षा होय अर्थात् भीन पर राजेस पत्थर होय 'कटू सिलं वा' श्रेष्ठ शिक्षा દુષ્ય અર્થાત્ લાકડાનું બનાવેલ પીડાસન હેાય કે ફલક હાય અથવા પાર્ટ હાય ‘અજ્ઞા संथडमेव' पडेयेथी त्यां राजेस होय ते प्रभाले ४ स्थाननी यायना ४२वी. 'तस्स लाभे संते संवसिज्जा' भने यथासंस्तृत अर्थात् पहेलेथी पाथरेस तृष्ण, पराज, विगेरे भणपाथी निवास कुरो तथा 'तस्स अलाभे' से घास विगेरे पाथरगु न भणवाथी 'उक्कुडुओ वा ' डुङ्कुटासन अथवा 'नेसज्जिज्जा वा' मेठा मेडा ४ रहेवु 'सत्तमा पडिमा ' मा सातभी પ્રતિજ્ઞા રૂપ પરિમા સમજવી,
હવે આ સાતે પ્રતિમાઓના ઉપસંહાર કરતાં સૂત્રકાર કહે છે.
'इच्चेयासिं सत्तहं पडिमाणं' या उपरोक्त अलिड ३५ सात प्रतिभागमां ने अध
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪