Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्फंघ २ उ. १ सू० ११ तृतीयं ईर्याध्ययननिरूपणम्
५२३ णाम कटु' नावा वा-नौकया वा नावम् नौकाम् नाव परिणाम परिवर्तनं कृत्वा 'थलाभो वा नावं जलंसि स्थलाद वा भूमिभागाद नावं नौकां जले 'ओगाहिज्जा' अवगाहेत-अवगाहनं कुर्यात्, स्थलाद् नावं जले प्रवेशयेत् ‘जलाओ वा नावं थलंसि उक्कसिज्जा' जलाद् या नद्यादि सकाशात् नावं स्थले भूमिमागे उत्कर्षत, आकृष्य नयेत् 'पुण्ण वा नावं उस्सि. चिज्जा' पूर्णा वा जलपरिपूर्णा नावं नौकाम् उत्सिञ्चेत्-उत्सेचनेन जलं बहि निष्काशयेत् 'सन्नं या नावं उप्पीलाविज्जा' सन्नां वा कर्दमादौ निमग्ना वा नायम् उत्प्लावयेत्-उद्धृत्य पहिनिष्काशयेत 'तहप्पगारं नावं' तथाप्रकाराम् क्रीयमाणादिरूपां नायम् 'उड़गामिणि या' ऊर्ध्वगामिनी वा उपरिवाहिनी वा 'अहे गामिणि वा' अधो गामिनी वा जलाधस्तल. वाहिनी वा 'तिरियमामिणि वा' तिर्यग् गामिनी वा तिरश्वीनतया वाहिनी वा नायम् 'परं जोयणमेराए' परं योजनमर्यादायाः योजनमर्यादानुपातेन या 'अदजोयणमेराए' जलंसि ओगाहिज्जा' स्थल भागसे नौका को जलमें अवगाहन प्रवेश कराया है या 'जलाओ या नावं थलंसि उक्तसिज्जा' जल सेही नौका को स्थल पर ले गया है अथवा 'पुण्णं चा नावं उस्सिचिज्जा' जलसे भरी हुई नौका को उसिचन कर रहा है अर्थात् पानी से भरी हुई नौका के पानीको बाहर उछालकर निकाल रहा है अथवा 'सन्नंया नायं उप्पीलाविज्जा' कीचड कर्दम वगैरह में निमग्न नौका को बाहर निकाल रहा है ऐसा जानकर या देखकर 'तहप्पगारं नाचं उगामिणिं या,' उस प्रकारकी खरीदी गयी नौका में या उधार पैसा लेकर ली गयी नौका में अर्थात उपर्युक्त नौकामें चाहे वह नौका ऊर्ध्वगामिनी जल के ऊपर बहने वाली हो या 'अहेगामिणि या' जल के अधस्तल में बहने वाली हो या-'तिरियगामिणि वा तिरछी होकर बहने वाली हो या एवं चाहे वह नौका 'परं जोयणमेराए' एक योजन मर्यादा के अनुपात से बहने वाली हो या 'अद्धजोयणमेराए' अर्धयोजन मर्यादा से बहने वाली हो अथवा 'अप्पतरे वा' धीमी वा नावं परिणाम कटु' नौथी नौ महदीन अर्थात् महसमहाशन तथा 'थलाओ वा नावं जलंसि ओगाहिज्जा' मीन ५२था नौने समi प्रवेश ४२।०ये। डाय मार 'जलाओ वा नावं थलसि उक्कसिज्जा' माथी नआने मीन ५२ या डाय मय'पुण्णं वा' पाथी मरेसी 'नावं उसिंचिज्जा' नामांथी पाली महार जीने 16ता डाय अय। 'सन्न वा नावं उप्पिलाविज्जा' हम पी गयेसानापन महार
उता डाय से धने , जीन 'तहप्पगार नावं' से प्रारे भरी रेस में पैसा ઉછીના લઈને લીધેલ નૌકામાં અર્થાત પૂર્વેત પ્રકારથી લીધેલ નૌકામાં ચાહે તે તે als! 'उड्ढगामिणि वा' पानी ५२ खान यासनारी डाय २५५५। 'अहेगामिणिं या' पाणी नाये शासनारी हाय 4241 तिरियगामिणिं वा' तिछ तथापाणी डाय अथवा 'परजोयणमेराए तन मे योनी भर्यायी पापाजी राय मया 'अजोयणमेराए'
श्री सागसूत्र :४