Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारांग सूत्रे
पत्रयाई वणाणि वा' तथैव - पूर्वोक्तरीत्यैव गत्वा उद्यानानि पर्वतान् वनानि वा गत्वेत्यर्थः 'haar महल्ले पेद्दाए एवं वइज्जा' वृक्षा महतः - विशालान प्रेक्ष्य-दृष्ट्रा एवं - वक्ष्यमाणरीत्या वदेत् - 'तं जहा - जाइताइ वा दीहवट्टाइ वा तद्यथा - जान्तिमन्तः प्रशस्तजातय: इमे वृक्षाः इति वा दीर्घवृत्ताः दीर्घाः विशालाः वृत्ताः वर्तुलाच गोलाकारा इमे वृक्षा इति वा 'महालया इवा पयायसालाइ वा' महालया : - अत्यन्तविस्तृता: इमे वृक्षाः, प्रयातशाखा :- अत्यन्त विस्तृताने कशाखायुक्ता इमे वृक्षाः 'विडिमसालाइ वा पासाइयाइ वा जाव एडिरुवाइ वा ' निवडशाखायुक्ता इमे वृक्षाः प्रसादनीयाः प्रसन्नताकारकाः इमे वृक्षाः, यावद् अभिरूपाः इमे वृक्षाः, प्रतिरूपा: इमे वृक्षाः इति वा वदेदित्याह - 'एयपगारं भासं असावज्जं जाव भासिज्जा' एतत्प्रकाशम् जातिमत्प्रभृतिशब्दरूपां भाषाम् असावद्याम् निरवद्याम् यावत् को लक्ष्यकर बतलाते हैं 'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा वह पूर्वोक्त भिक्षुसंयमशील साधु और भिक्षुकी साध्वी- 'तहेव गंतुमुलाणाई' पूर्वोक्तरीति से ही उद्यान उपवन बगीचा वगैरह में तथा - 'पव्वयाई' पहाड़ों में एवं - ' वाणि वा' वनों में जाकर 'रुक्खा महल्ले पेहाए' बडे बडे वृक्षों को देखकर 'एवं वइज्जा' इस प्रकार वक्ष्यमाण रीति से ही वृक्षादि के विषय में बोले कि 'तं जहा' जैसे कि- ' जाइताइवा' ये वृक्ष प्रशस्त जात वाले हैं तथा 'दीहवहाइ वा' अत्यंत विशाल और गोलाकार हैं तथा 'महालयाइ वा' अत्यंत विस्तृत हैं तथा 'पयायसालाइ वा' अत्यंत विस्तृतशाला - अनेकों डालों से युक्त हैं एवं 'विडिमसालाई वा' अत्यंत सघन शालाओं से युक्त हैं एवं 'पासाइयाइवा' ये वृक्ष अत्यंत प्रसाद प्रसन्नता उत्पन्न करने वाले हैं एवं 'जाव पडिवाइ वा' यावत्अत्यंत अभिरूप रमणीय वृक्ष हैं एवं अत्यंत प्रतिरूप से युक्त ये वृक्ष हैं। इसतरह बोलना चाहिये क्योंकि - 'एयप्पगारं भासं' इस प्रकार के वृक्ष विषय का शब्द प्रशस्त जाति युक्त है 'असावज्जं जाव' असावग्र अगहर्ष अनिन्दनीय माने जाते हैं तथा यावत् अनर्थ दण्ड प्रवृत्ति जनकरूप सक्रिय भी नहीं माने
' तद्देव गंतुमुज्जाणाई' पूर्वोक्त उथन प्रमाणे उद्यानमा अथवा मगीयामां है उपवनामां 'पव्वयाई' पहाडमा 'वणाणि वा' वनोभा भने 'रुक्खामहल्ले पेहाए एवं वइज्जा' भोटा મેટા વૃક્ષાને જોઈને તે વૃક્ષાદિના સબંધમાં આ વર્ષમાણુ રીતે ખેલવુ'તું નહા જેમ } 'जाइमंताइ वा' या वृक्षा उत्तम लतवाजा छे. 'दीहवट्टाइ वा' तथा अत्यंत विशाण छे मने गोणार छे. 'महालयाइ वा' तथा या वृक्षो व्यत्यंत विस्तारवाजा छे, मने 'पायसालाइ वा' भोटी मोटी भने डागोवाजा है अथवा 'विडिवसालाइ वा' ध गाढ शाभा वाजा छे भने 'पासाइयाइ वा' अत्यंत प्रसन्नता उत्पन्न कुशवनारा छे भने 'जान पडिवा' यावत् अत्यंत अभिय मने रमणीय या वृक्ष छे, तथा अत्यंत अतिउपषाणा या वृक्ष हे मा रीते वृक्षोना संबंधां मावु भ है- 'एयप्पारं भासं ' આવા પ્રકારના પ્રશસ્ત જાતિ યુક્ત વૃક્ષેના સંબંધમાં એલવામાં આવેલ શ
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪