Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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आचारांगसूत्रे पापकम् गर्हितं पर:-अन्यः मन्यते-मन्येत इति भावः एवम् 'परंच णं अदत्तहारी पडिपहे पेहाए' परञ्च-अन्यं च खलु अदत्तहारिणम्-अदत्तापहारिणम्-चौरम् प्रतिपथे प्रेक्ष्य-दृष्ट्वा 'तस्स वत्थस्स नियाणाय' तस्य वस्त्रस्य निदानाय-रक्षणाय 'नो तेसिं भीओ उम्मग्गेणं गच्छिज्जा' नो तेभ्यः चौरेभ्यः भीतः सन् उन्मार्गेण-कुपथेन गच्छेत् 'जाव अप्पुम्सुए' यावत्-समाहितः अल्पोत्सुकः वस्त्राग्रुपधिषु उत्सुकता रहितः सन् 'तओ संजयामेव गामाणु. गामं दूइज्जिना' ततः निरुत्सुको भूत्वा संयतमेव यतनापूर्वकमेव ग्रामानुग्रामम्-ग्रामाद्ग्रामान्तरं येत-गच्छेत् 'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'गामाणुगामं दुइज्जमाणे' ग्रामानुग्रामम्-ग्रामाद्यामान्तरम् दूयमानः-गच्छन् 'अंतरा से विहं सिया' अन्तराफेंकना चाहिये 'जहा मेयं वत्थं पावगं परो मन्नइ' यथा-जिस से परिष्ठापन से अर्थात् दग्ध स्थण्डिल वगैरह प्रदेश में फेंक देने से मेरे उस फेंके हुए वस्त्र को दूसरा पुरुष गर्हित खराब समझ लेगा इस तात्पर्य से उस अपने खूब मजबूत वस्त्र को भी फाड चीर कर नहीं फेंकना चाहिये क्योंकि इस तरह नये मजबूत वस्त्र को फेंक देने से संयम की विराधना होगी इसी तरह 'परंच णं अदत्तहारी पडीपहे पेहाए' रास्ते में दूसरे अदत्तहारि चोर को देख कर 'तस्स बत्थस्स नियाणाय' उस अपने वस्त्र को बचाने के लिये 'नो तेसि भीओ उम्मग्गेगं गच्छिज्जा' उन चोरों से डर कर उन्मार्ग-कुपथ से नहीं जाना चाहिये अपितु 'जाघ अप्पुस्लुए' यावत्समाहित होकर वस्त्रादि उपधि में आसक्ति वर्जित होकर अर्थात् उत्सुकता रहित होकर याने वस्त्रादि उपधि की चिन्ता नहीं करते हुए ही 'तओ संजयामेव गामाणुगामं दइजिजा' संयमनियमपालन पूर्वक ही एक ग्राम से दूसरे ग्राम में जाय 'से भिक्खू वा, भिक्खुणी वा गामाणुगाम दुइजमाणे' वह पूर्वोक्त भिक्षु संयमशील साधु और साध्वी एक ग्राम से दूसरे ग्राम जाते हुए यदि 'अंतरा विहं सिया' रास्ते के मध्य में घोर बीहर जंगल मिल जाय और 'से जं पुण विहं
યંડિલ વિગેરે પ્રદેશમાં ફેંકી દેવાથી મારા ફેકેલા વસ્ત્રને બીજે પુરૂષ ખરાબ સમજશે એ હેતુથી તેણે પિતાના મજબૂત વસ્ત્રને પણ ફાડી ચીરીને ફેંકી દેવા નહીં. કેમ કે આવી રીતે નવા અને મજબૂત વસ્ત્રને ફેંકી દેવાથી સંયમની વિરાધના થાય છે. એ જ પ્રમાણે २स्तामा ‘पर च णं अदत्तहारी पडिपहे पेहाए' महत्त हरी थारने निधन 'तस्स वत्थस्स नियाणाय' से पोताना वखने भयावा माटे 'नो तेसिं भीओ उम्मग्गेणं गच्छज्जा' से याथी उशन अ५२ अर्थात् मवणे २२तेथी नही. परंतु 'जाव अप्पुस्सुए तओ संजया. એવ’ યાવત્ સમાહિત થઈને વસ્ત્રાદિ ઉપધિમાં આસક્તિ રહિત થઈને અર્થાત્ ઉત્સુકતા રહિત થઈને એટલે કે વસ્ત્રાદિની ચિંતા કર્યા વિના જ સંયમ નિયમના પાલન પૂર્વક १ 'गामाणुगाम दूइज्जिज्जा' मथा मीर म विय२'. 'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' त पूरित सयमशीस साधु सने सावी 'गामाणुगाम दूइज्जमाणे' से गामथा भीर आम rdi 'अंतरा से विहं सिया' भाभी ने कार र भावी onय से जं
श्री आया। सूत्र : ४